नेता पर पत्र
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र
की दशा-दिशा से संवाद को हिंदी कविता ने किसी कर्तव्य की तरह अपने ऊपर हावी रखा है और इस क्रम में इसके प्रतिनिधि के रूप में नेता या राजनेता से प्रश्नरत बनी रही है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का है।
पिता के पत्र पुत्री के नाम (सरग़ना राजा हो गया)
बूढ़े सरग़ना ने हमारा बहुत सा वक़्त ले लिया। लेकिन हम उससे जल्द ही फ़ुर्सत पा जाएँगे या यों कहो उसका नाम कुछ और हो जाएगा। मैंने तुम्हें यह बतलाने का वादा किया था कि राजा कैसे हुए और वह कौन थे? और राजाओं का हाल समझने के लिए पुराने ज़माने के सरग़नों का ज़िक्र
जवाहरलाल नेहरू
पिता के पत्र पुत्री के नाम (सरग़ना का इख़्तियार कैसे बढ़ा)
मुझे उम्मीद है कि पुरानी जातियों और उनके बुज़ुर्गों का हाल तुम्हें रूखा न मालूम होता होगा। मैंने अपने पिछले ख़त में तुम्हें बतलाया था कि उस ज़माने में हर-एक चीज़ सारी जाति की होती थी। किसी की अलग नहीं। सरग़ना के पास भी अपनी कोई ख़ास चीज़ न होती थी। जाति के
जवाहरलाल नेहरू
पिता के पत्र पुत्री के नाम (ख़ानदान का सरग़ना कैसे बना)
मुझे भय है कि मेरे ख़त कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब ज़िंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने ज़माने में लोगों की ज़िंदगी बहुत सादी थी और हम सब अब उस ज़माने पर आ गए हैं जब ज़िंदगी का पेचीदा होना शुरू हुआ। अगर हम पुरानी बातों को ज़रा सावधानी के साथ जाँचें