हिंदी पर निबंध
एक भाषा और मातृभाषा
के रूप में हिंदी इसका प्रयोग करने वाले करोड़ों लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं का भार वहन करती है। एक भाषाई संस्कृति के रूप में उसकी जय-पराजय चिंतन-मनन का विषय रही है। वह अस्मिता और परिचय भी है। प्रस्तुत चयन में हिंदी, हिंदीवालों और हिंदी संस्कृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
क्या हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं?
जी हाँ, इस नाम की कोई भाषा नहीं। कम से कम संयुक्त प्रांतों में तो इसका कहीं पता नहीं ! ऑनरेबल असग़र अली ख़ाँ, ख़ान बहादुर, की यही राय है। प्रमाण? इसकी क्या ज़रूरत? ख़ान बहादुर का कहना ही काफ़ी प्रमाण है! प्रारंभिक शिक्षा-कमिटी ने रीडरों की भाषा के
महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिंदी का नाट्य साहित्य और उसकी गति
नाटक शब्द नट्−धातु से बना है। ‘नट’ नाच के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अंग्रेज़ी में नाटक को ड्रामा कहते हैं। ड्रामा के लिए संस्कृत में नाटक की अपेक्षा ‘रूपक’ शब्द अधिक उपयुक्त है। ड्रामा का मूल शब्द इसी अर्थ का द्योतक है। ड्रामा उन रचनाओं को कहते हैं,
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
हिंदी साहित्य जगत का सिंहावलोकन
आज से उन्नीस वर्ष पहले, जब कि हिंदी साहित्य सम्मेलन का जन्म नहीं हुआ था, और उसके जन्म के पश्चात् भी कई वर्षों तर अपनी मातृ-भाषा का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध करने के लिए, हमें पग-पग पर न केवल संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, सौराष्ट्री की छान-बीन करते
गणेश शंकर विद्यार्थी
मेघदूत में कालिदास का आत्मचरित
काव्य ही कवि का जीवन है। उसी में उसकी आत्मा निवास करती है। यदि हम किसी कवि का वास्तविक रूप देखना चाहते हैं तो हमें उसके काव्यों का अवलोकन करना चाहिए। उनसे हम कवि के जीवन के विषय में कुछ बातें अवश्य जान सकते हैं। कवि का किस पर अनुराग था, किससे घृणा थी,
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
हमारे पुराने साहित्य के इतिहास की सामग्री
हिंदी साहित्य का इतिहास केवल संयोग और सौभाग्यवश प्राप्त हुई पुस्तकों के आधार पर नहीं लिखा जा सकता। हिंदी का साहित्य संपूर्णतः लोक भाषा का साहित्य है। उसके लिए संयोग से मिली पुस्तकें ही पर्याप्त नहीं है। पुस्तकों में लिखी बातों से हम समाज की किसी विशेष