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हिंदी पर ब्लॉग

एक भाषा और मातृभाषा

के रूप में हिंदी इसका प्रयोग करने वाले करोड़ों लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं का भार वहन करती है। एक भाषाई संस्कृति के रूप में उसकी जय-पराजय चिंतन-मनन का विषय रही है। वह अस्मिता और परिचय भी है। प्रस्तुत चयन में हिंदी, हिंदीवालों और हिंदी संस्कृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

हिंदी का पहला मुसलमान कवि

हिंदी का पहला मुसलमान कवि

हिंदी साहित्य को 11वीं-12वीं सदी का एक मुसलमान कवि मिला, जिसे नाम दिया गया—महाकवि अब्दुल रहमान। अब्दुल रहमान को 'हिंदी का पहला मुसलमान कवि' मानते हैं। हिंदीवालों के हिसाब से अब्दुल रहमान के बाद हिंदी

दयाशंकर शुक्ल सागर
मैंने हिंदी को क्यों चुना

मैंने हिंदी को क्यों चुना

पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री प्राप्त हुए मुझे लगभग दो साल पूरे हो चुके हैं। मेरे साथ के सभी सहपाठियों ने कहीं न कहीं दाख़िला ले लिया है और वे अक्सर पूछते हैं कि मैंने कहीं पर दाख़िला क्यों नहीं लिय

रुकैया
गांधीजी और उनकी वसीयत

गांधीजी और उनकी वसीयत

उत्तराधिकार के लिए सबसे बड़ा युद्ध भारतीय इतिहास में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के बेटों में बताया जाता है। पूरा बयान तो नहीं मिलता, लेकिन इतना पता ज़रूर चलता है कि शाहजहाँ अपने बड़े और विद्वान पुत्र दारा क

नामवर सिंह
उदास शहर की बातें

उदास शहर की बातें

एक इन दिनों अजीब-सी बेरुख़ी है, मार्च की हवा चुभ रही है। ख़ुद से लड़ाई बढ़ती चली जा रही है। जब लड़ाई ख़ुद से हो तो जीतने में कोई रस नहीं रहता, क्योंकि जो हार रहा होता है; उसमें भी हमारा होना बचा होता है।

गौरव गुप्ता
नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती

नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती

समय की समझदारी का चेहरा तत्कालीन पीढ़ियों के कई सारे लोग मिल कर बनाते हैं। समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण कवि-लेखक राजेश जोशी से उनकी रचनाओं के आस-पास या यूँ कहें उनके रचना-समय के आस-पास पिछले दिनों एक

कुमार मंगलम
हिंसा ही नहीं है हिंदी

हिंसा ही नहीं है हिंदी

हिंदी एक विचारधारा है और यह विचारधारा पुनरुत्थानवादी और सांप्रदायिक है जो किसी प्रतिगामी हिंदी राष्ट्रवाद से अभिज्ञापित की जा सकती है। भाषा एक विचारधारा हो सकती है, यह एक नया विचार है। इस तरह से दे

देवी प्रसाद मिश्र
मेरे लिए इक तकलीफ़ हूँ मैं

मेरे लिए इक तकलीफ़ हूँ मैं

पिछले कुछ महीनों से उसने अपने बाल बढ़ा लिए थे, माथे पर जूड़ा बाँधने लगा था और ख़ुद को ख़ुद ही उष्णीष कहने लगा था। पिछले कुछ समय से वह बीमार हो चला है। उसके चेहरे का हिस्सा ठीक से काम नहीं कर रहा। उसकी एक

आदित्य शुक्ल
नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़

नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़

कोई आहट आती है आस-पास, दिसंबर महीने में। नहीं, आहट नहीं, आवाज़ आती है। आवाज़ भी ऐसी जैसे स्वप्न में समय आता है। आवाज़ ऐसी, मानो अपने जैसा कोई जीवन हो, समस्त ब्रमांड के किसी अनजाने-अदेखे ग्रह पर। किसी

प्रांजल धर
चलो भाग चलते हैं

चलो भाग चलते हैं

तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजना

अतुल तिवारी
मैं अनुवाद कैसे करता हूँ

मैं अनुवाद कैसे करता हूँ

अनुवाद भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संगम का काम करता है। हिंदी में बहुत सारे अनुवाद हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय हिंदी में एक ऐसी पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँग्रेज़ी अनुवादों के माध्यम से संसार भर के

अरविंद कुमार
सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ

सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ

शोध-कार्य-क्षेत्र में सक्रिय जनों को प्राय: ‘सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ’ इस समस्या से साक्षात्कार करना पड़ता है। यहाँ प्रस्तुत हैं इसके समाधान के रूप में कुछ बिंदु, कुछ सुझाव : • आप 2400-2500 शब्दों का एक

रमाशंकर सिंह
एक लेखक को किन चीज़ों से बचना चाहिए?

एक लेखक को किन चीज़ों से बचना चाहिए?

एक लेखक को इन चीज़ों से बचना चाहिए : • सूक्तियों से—सूक्तियाँ बहुत चमकीली होती हैं, लेकिन वे अक्सर अर्द्धसत्यों से बनती हैं; उनके पीछे इच्छा ज़्यादा होती है, अनुभव कम। • सामान्यीकरणों से—सामान्य

प्रियदर्शन

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