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वृंदावनलाल वर्मा

1889 - 1969 | झाँसी, उत्तर प्रदेश

ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए ख्यात उपन्यासकार, कहानीकार और नाटककार। पद्म भूषण से सम्मानित।

ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए ख्यात उपन्यासकार, कहानीकार और नाटककार। पद्म भूषण से सम्मानित।

वृंदावनलाल वर्मा के उद्धरण

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स्त्रियाँ दृढ़ता का कवच पहनें तो फिर संसार में ऐसा पुरुष कोई हो ही नहीं सकता जो उनको लूट ले।

स्त्री का गौरव, सौंदर्य, महत्त्व स्थिरता में है।

तल्लीनता के साथ शून्य ध्यान में मग्न हो जाना यही असली ध्यान है।

स्त्री की बात ही उसकी ढाल तलवार है।

कृतज्ञ नेत्र! सुंदर, मनोहर और हृदयहारी! किसने बनाए? क्यों बनाए? आत्मा के गवाक्ष। पवित्रता के आकाश | प्रकाश के पुंज।

कर्त्तव्य-पालन करते हुए मरना जीवन का ही दूसरा नाम है।

फूलों से आँखों को हटाकर काँटों या सूखे पत्तों पर ज़माना उतना ही बड़ा भ्रम है जितना फूलों को देखते-देखते काँटों और सूखे पत्तों की बिल्कुल उपेक्षा और अवहेलना करना। अपनी-अपनी जगह सबका उपयोग होना चाहिए।

शिल्पी और कारीगर निर्माण कला के शब्द और व्याकरण हैं।

जीवन की खिड़की में से ही परमात्मा की झाँकी मिलनी संभव है।

वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही उचित कर्म है।

अनंत विश्व की विशालतम और सूक्ष्मतम सचेत महाशक्ति का नाम परमात्मा है।

जीवन में काम करना, श्रम से रोटी का उपार्जन करना और शिव का नाम लेना, यही गौरव है। इसी में जीवन की सार्थकता है।

नींव के पत्थर भवन को नहीं देख पाते। परंतु भवन खड़ा होता है, उन्हीं के भरोसे—जो नींव में गड़े हुए हैं।

जीवन को कल्याणमय और सुंदर बनाने से ही मृत्यु भी शुभ बन सकती है।

वह कला ही क्या जो कर्त्तव्य को लंगड़ा कर दे।

परमात्मा-रहित जीवन का उपयोग ही माया है।

मैं कहूँगा और फिर कहूँगा। समय कहेगा और संसार कहेगा। इतिहास कहेगा और कहानियाँ कहेंगी। मुझे मार डालो, इससे आप लोगों की अपकीर्ति का प्रवाद रुकेगा नहीं।

धर्म की आज्ञा सबसे ऊपर होती है।

भारत के पहाड़, जंगल, नदी-नाले, विस्तृत क्षेत्र और लंबे-चौड़े अंतर, अनगिनत छोटे बड़े राज्यों की संख्या और जनपदों के खंडों की भिन्नता को बढ़ाने में सदा से सहायक रहे हैं, परंतु एक छोर के विचार और मत के दूसरे छोर तक पहुँचने में तो वे और उनके उत्पादन—अनेक छोटे बड़े राज्य, रजवाड़े और भिन्न-भिन्न जनपदों के सीमाबद्ध संकुचित खंड कभी बाधक हो पाए हैं।

नींव एक पत्थर से नहीं भरी जाती। और, एक दिन में। अनवरत प्रयत्न, निरंतर बलिदान आवश्यक है।

संकल्प और भावना जीवन-तखड़ी के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा।

तपस्या में क्षय पहले है और अक्षय पीछे।

अनवरत प्रयत्न का नाम ही जीवन है।

शंकर उत्पन्न हुए सुदूर दक्षिण में और अपने विरोधी को हराने को तथा अपने मत के प्रचार के लिए भी पहुँच गए कश्मीर। चैतन्य हुए दूरवर्ती बंगाल में और उनके मत के प्रचारकों ने अपना संस्थान बनाया वृंदावन में!! तक्षशिला का ब्राह्मण कांची के विद्यालय में और कांची का कश्मीर और काशी में!!! गंगा और गोदावरी का नाम उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम के छोर-छोर तक, घर-घर में, जंगल में, पर्वत की कंदराओं में—मानो हिमालय, विंध्याचल, सह्याद्रि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हों।

यह हमारे देश का सौभाग्य है कि अतिपतनोन्मुखी युग में भी महान नर-नारी हुए हैं जो मार्ग-दर्शन करते हुए अपनी छाप छोड़ गए।

मौत के लिए किसी को भटकना नहीं पड़ता। जो लोग कहते हैं कि मौत नहीं आती, वे असल में मौत चाहते नहीं, मुँह से केवल बकते हैं।

संयम के आधार वाला प्रेम ही आगे भी टिके रहने की समर्थता रखता है।

स्त्री को पराजित करना हो तो उसकी प्रशंसा करो।

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