रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

सखी संप्रदाय

-1883 लखनऊ

वास्तविक नाम कुंदनलाल। सखी संप्रदाय में दीक्षित होकर ललित किशोरी नाम रखा। कृष्ण-भक्ति से ओत-प्रोत सरस पदों के लिए स्मरणीय।

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