रीतिकाल

काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।

आचार्य

रीतिकालीन आचार्य कवि। अलंकार ग्रंथ 'अलंकारमणि मंजरी' के रचनाकार। सुबोध और सरल विषय प्रतिपादन के लिए प्रसिद्ध।

1746

रीतिकालीन आचार्य कवि। काव्यांग विवेचन और नायिकाभेद के लिए स्मरणीय।

रीतिकालीन कवि। साहित्य शास्त्र के प्रौढ़ निरूपण के लिए विख्यात।

1680

ब्रजभाषा के सरस कवि। 'रस चंद्रोदय' नामक ग्रंथ के लिए ख्यात।

रीतिकालीन कवि। वीरकाव्य के रचयिता।

रीतिकाल। नायिकाभेद और नख-शिख वर्णन में सिद्धहस्त और सहृदय कवि।

1802 -1867 मथुरा

रीतिबद्ध कवि। सोलह भाषाओं के ज्ञाता। देशाटन से अर्जित ज्ञान और अनुभव इनकी कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है। विदग्ध और फक्कड़ कवि।

ओरछा नरेश पृथ्वीसिंह के आश्रित कवि। आचार्यत्व सामान्य, भाषा सरल और उदाहरण सहज हैं।

1609

रीतिकाव्य की अखंड परंपरा के आरंभिक कवि। ललित-सानुप्रास भाषा और मनोहर वर्णन प्रणाली का निर्वहन करने वाले कवि के रूप में ख्यात।

1629 -1678 जोधपुर

मारवाड़ के राजा और रीतिकालीन कवि आचार्य। अलंकार निरूपण ग्रंथ 'भाषा भूषण' से हिंदी-संसार में प्रतिष्ठित।

रीतिबद्ध कवि। भावों के सघन विधान और कल्पना के सफल निर्वाह के लिए समादृत नाम।

रीतिकाल के आचार्य कवि। अलंकार-विषयक ग्रंथ 'लालित्य-लता' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

1696 -1773 इटावा

रीतिबद्ध काव्य के आचार्य कवि। अनेक राजाओं के राज्याश्रित। कविता में अर्थ-सौष्ठव और नवोन्मेष को साधने वाले प्रतिभा-पुंज।

रीतिकाल के प्रतिभाशाली कवि। काव्य के कलागत वैशिट्य के साथ भावों की स्वाभाविकता और मार्मिकता का निर्वाह करने में निपुण।

1753 -1833 बाँदा

रीतिकाल के अंतिम प्रसिद्ध कवि। भाव-मूर्ति-विधायिनी कल्पना और लाक्षणिकता में बेजोड़। भावों की कल्पना और भाषा की अनेकरूपता में सिद्धहस्त कवि।

रीतिकाल के आचार्य कवि। साहित्यमर्मज्ञ, भावुक और अपूर्व काव्य कौशल में प्रवीण। इनकी भाषा में न कहीं कृत्रिम आडंबर है, न गति का शैथिल्य और न शब्दों की तोड़ मरोड़।

रीतिबद्ध के आचार्य कवि। काव्यांग-निरूपण में सिरमौर। शृंगार-निरूपण के अतिरिक्त नीति-निरूपण के लिए भी उल्लेखनीय।

सरस कल्पना के भावुक कवि। स्वभाविक, चलती हुई व्यंजनापूर्ण भाषा के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल के महत्त्वपूर्ण कवि। निश्छल भावुकता, सूक्ष्म कल्पनाशीलता और सुकुमार भावों के अत्यंत ललित चित्रण के लिए प्रसिद्ध।

रीतिकालीन कवि। सर्वांग निरूपक। पावस-ऋतु-वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

रीतिकालीन कवि। काव्य-कला में निपुण। छंदशास्त्र के विशद निरूपण के लिए स्मरणीय।

रीतिकालीन अलक्षित कवि। रीति ग्रंथ 'सुंदर शृंगार' विशेष उल्लेखनीय।

रीतिकालीन कवि, टीकाकार और गद्यकार।

रीतिकाल के आचार्य कवियों में से एक। भरतपुर नरेश प्रतापसिंह के आश्रित। भावुक, सहृदय और विषय को स्पष्ट करने में कुशल कवि।

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