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जसुराम

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।

जसुराम की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 4

राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।

जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥

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चोरी चुगली पर तिया, कोऊ काम कुकाम।

एती बात जानिये, सोऊ रैयत नाम॥

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जो दीजै परधान पद, तो कीजे इतवार।

जो इतवार होय जसु, तो परधान निवार॥

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रैयत सब राज़ी रहै, मेटन राउत मान।

आमद घटै राय की, ऐसे करै प्रधान॥

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कवित्त 4

 

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