रीतिकाल
काव्यशास्त्र की विशेष परिपाटी का अनुसरण करने के कारण 1643 ई. से 1843 ई. के समय को साहित्य का रीतिकाल कहा गया है। घोर शृंगार काव्य के अतिरिक्त इस दौर में भावुक प्रेम, वीरता और नीतिपरक कविताएँ लिखी गईं।
रहस्यवादी कवि
                                     1769
                                                                     आज़मगढ़
                            
                                अठारहवीं सदी के संत कवि। पदों में हृदय की सचाई और भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति। स्पष्ट, सरल, ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग।
संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।
                                     1825 -1898
                                                            
                                'राधास्वामी सत्संग' के द्वितीय गुरु। स्पष्ट और सरल भाषा में अनुभवजन्य ज्ञान को अपनी वाणियों में प्रस्तुत किया।
 
                             
                            