रेल पर कविताएँ

यातायात के आधुनिक साधनों

में से एक रेलगाड़ी ने कालक्रम में मानव-जीवन और स्मृति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है और इसकी अभिव्यक्ति कविताओं में भी होती रही है। जहाँ स्वयं जीवन को एक यात्रा के रूप में देखा जाता हो, वहाँ यात्रा का यह साधन नैसर्गिक रूप से कविता का साधन भी बन जाता है। छुक-छुक की आवाज़, गुज़रते स्टेशन, पीछे छूटता घर, पड़ाव, मंजिल आदि कई रूपकों में रेल काव्याभिव्यक्तियों को समृद्ध बनाती रही है। इस चयन में रेल-विषयक कविताओं का एक अनूठा संकलन प्रस्तुत किया गया है।

मुलाक़ातें

आलोकधन्वा

इच्छा

सौरभ अनंत

इलाहाबाद

संदीप तिवारी

मेट्रो से दुनिया

निखिल आनंद गिरि

चाँदनी रात में रेल यात्रा

सीताकांत महापात्र

वसंत

उदय प्रकाश

सफ़र

निलय उपाध्याय

बारिश

निलय उपाध्याय

यात्रा

राजेंद्र धोड़पकर

सुहागरात

निलय उपाध्याय

प्लेटफ़ॉर्म पर

राजेश जोशी

भाप इंजन

वीरेन डंगवाल

तू

रवि भूषण पाठक

रायपुर बिलासपुर संभाग

विनोद कुमार शुक्ल

रेल

आलोकधन्वा

सो गए

फ़रीद ख़ाँ

रेलगाड़ी की आग

प्रदीप त्रिपाठी

संस्कार

असद ज़ैदी

जंक्शन

आलोकधन्वा

न बीत रहे पल से

पारुल पुखराज

रेल में किलकारी

बजरंग बिश्नोई

कुतूहल

उमाशंकर जोशी

गाड़ी

संदीप तिवारी

बरकत

सुषमा गुप्ता

चाँद और रेलगाड़ी

निधीश त्यागी

पसिंजरनामा

संदीप तिवारी

जनरल बोगी

नीलेश रघुवंशी

ज़ंजीर खींचने का मन

नीलेश रघुवंशी

चंबल पर रेल

सिद्धेश्वर सिंह

यात्रा-वृत्तांत

रमेशदत्त दुबे

हवा का झोंका

निलय उपाध्याय

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