यात्रा पर यात्रा वृत्तांत
यात्राएँ जीवन के अनुभवों
के विस्तार के साथ मानव के बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्वयं जीवन को भी एक यात्रा कहा गया है। प्राचीन समय से ही कवि और मनीषी यात्राओं को महत्त्व देते रहे हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में ध्वनित ‘चरैवेति चरैवेति’ या पंचतंत्र में अभिव्यक्त ‘पर्यटन् पृथिवीं सर्वां, गुणान्वेषणतत्परः’ (जो गुणों की खोज में अग्रसर हैं, वे संपूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हैं) इसी की पुष्टि है। यहाँ प्रस्तुत है—यात्रा के विविध आयामों को साकार करती कविताओं का एक व्यापक और विशेष चयन।
हिंद महासागर में छोटा-सा हिंदुस्तान
यात्रा पर मैं दिल्ली से 15 जुलाई को, बंबई (मुंबई) से 16 जुलाई को और नैरोबी से 17 जुलाई को मॉरिशस के लिए रवाना हुआ। इधर से जाते समय नैरोबी (केन्या) की दुनिया में मुझे एक रात और दो दिन ठहरने का मौक़ा मिल गया। अतएव मन में यह लोभ जग गया कि मॉरिशस के भारतीयों
रामधारी सिंह दिनकर
डेनमार्क के आलस्टेड गाँव में एक रात
मैं जन्म से दिहाती नहीं हूँ, पर मैंने दिहात की ख़ूब खाक छानी है। सन् 1900 से 1910 तक जब मैं जौनपुर, बस्ती, बनारस तथा बरेली ज़िलों के स्कूलों के निरीक्षण का काम करता था, दिहाती भाइयों से मेरा हेल-मेल हो गया था। उनके गुण-दोष उस समय से मुझ पर प्रकट हो गए।
रामनारायण मिश्र
योरप में स्नान, शौचादि के नियम और बाहरी सफ़ाई
प्रति दिन स्नान करने की आदत रखनेवाले भारतीय जब यूरोप जाएँ तो उन्हें इसके लिए कुछ अधिक व्यय करने को तैयार रहना चाहिए। जहाज़ में तो स्नानागार बने हुए हैं, पारी-पारी से लोग यदि चाहें तो नहा सकते हैं। परंतु, यूरोप पहुँचकर होटलों में नहाने के लिए पैसा देना
रामनारायण मिश्र
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