दुख पर कहानियाँ
दुख की गिनती मूल मनोभावों
में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।
संबंधित विषय
- अकेलापन
- अँधेरा
- अनुवाद
- अवसाद
- आत्महत्या
- एनसीईआरटी कक्षा-12 (NCERT CLASS-12)
- एनसीईआरटी समस्त (NCERT ALL)
- कुंठा
- करुणा
- कायर
- कार्यालय
- ग़रीबी
- गाँव
- घृणा
- चाँद
- चिंता
- चीज़ें
- चोर
- डर
- दुख
- दर्द
- देश
- न्याय
- निंदा
- पुत्र
- पृथ्वी
- प्रेम
- पराजय
- प्रायश्चित
- परिवार
- बच्चे
- मृत्यु
- मित्र
- यथार्थ
- यातना
- यौवन
- राजनीति
- रिक्तता
- लालच
- लोकतंत्र
- व्यंग्य
- वैश्विक साहित्य (गद्य)
- वियोग
- विवाह
- शर्म
- शहर
- सच
- स्त्री
- सभ्यता
- समाज
- स्वार्थ
- संस्कृति
- साहस