सच्चा अर्थशास्त्र तो न्याय-बुद्धि पर आधारित अर्थशास्त्र है।
जो बात शुद्ध अर्थशास्त्र के विरुद्ध हो, वह अहिंसा नहीं हो सकती। जिसमें परमार्थ है वही अर्थशास्त्र शुद्ध है। अहिंसा का व्यापार घाटे का व्यापार नहीं होता।
'प्रत्येक को वोट' जैसे राजनीतिक प्रजातंत्र का निष्कर्ष है वैसे ही 'प्रत्येक का काम' यह आर्थिक प्रजातंत्र का मापदंड है।
प्राचीन ग्रंथों में यदि धर्मशास्त्र महत्त्वपूर्ण है, तो अर्थशास्त्र और कामशास्त्र भी उपेक्षणीय नहीं हैं। सामान्य धर्म की परिकल्पना को भी अध्यात्मोन्मुख नहीं माना जा सकता।