गैंग्रीन/रोज़
दुपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते हुए मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किंतु फिर भी बोझल और प्रकम्पमय और घना-सा फैल रहा था…
मेरी आहट सुनते ही मालती बाहर निकली। मुझे देखकर, पहचानकर