Font by Mehr Nastaliq Web
Mahatma Gandhi's Photo'

महात्मा गांधी

1869 - 1948 | पोरबंदर, गुजरात

भारत के राष्ट्रपिता। 'बापू' और 'महात्मा' के रूप में समादृत। सत्य, अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भावना के वैश्विक प्रकाश-स्तंभ।

भारत के राष्ट्रपिता। 'बापू' और 'महात्मा' के रूप में समादृत। सत्य, अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भावना के वैश्विक प्रकाश-स्तंभ।

महात्मा गांधी के उद्धरण

13
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

अपने में विश्वास और जिसको दुश्मन मानें उसका उद्धार करने में हमारी रक्षा होती है।

भारत में यदि कोई ग्रंथ झोंपड़ियों से महलों तक में स्थान पा सका है, तो वह तुलसीकृत रामायण है।

दिल में जो ज्योति होनी चाहिए उसको प्रकट करने की कोशिश हमें करनी है। हमारे दिल में राम विराजमान हैं और वहाँ भी युद्ध चलता है राम और रावण के बीच में। अगर हृदय में, उसके बाहर नहीं, राम पर रावण की जीत होती है तो उसका मतलब है कि हृदय में ज्योति नहीं है, अँधेरा है। अगर राम की रावण पर जय होती है और रावण बेकार हो जाता है या परास्त हो जाता है, तब हमारे भीतर तो ज्योति है ही, बाहर भी दिया-बत्ती जलाने का हमको हक़ हो जाता है।

जो हिंदुस्तान में पैदा हुआ है उसका स्थान हिंदुस्तान में है—चाहे फिर वह किसी धर्म का हो।

शुद्ध बनने का अर्थ है मन से, वचन से और काया से निर्विकार बनना, राग-द्वेषादि से रहित होना।

जो अल्पमत में हैं उनकी हमें ज़्यादा दरकार होनी चाहिए, यही तालीम मैं अबतक देता आया हूँ।

स्वदेशाभिमान का अर्थ मैं देश का हित समझता हूँ।

सत्याग्रह दुनिया में सबसे बड़ी ताक़त है, जिसके सामने आपका बताया हुआ विरोधी संगठन लंबे समय तक टिक नहीं सकता।

हर एक को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का हुक्म मानना चाहिए। अंतरात्मा की आवाज़ सुन सकें तो जैसा ठीक समझें वैसा करना उचित होगा, लेकिन किसी भी सूरत में दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए।

आदमी जब बिगड़ता है तो स्वभाव से ही कुछ ऐसा है कि जब वह एक चीज़ में बिगड़ता है, तो पीछे सब चीज़ों में ही बिगड़ जाता है।

एक फ़ालतू विचार कोई विचार नहीं होता।

हममें से हर एक को भंगी बनकर सेवा करनी चाहिए। जो मनुष्य पहले भंगी नहीं बनता, वह ज़िंदा रह नहीं सकता है और रहने का उसे हक़ है।

बिना आत्मशुद्धि के प्राणिमात्र के साथ एकता का अनुभव नहीं किया जा सकता है और आत्मशुद्धि के अभाव से अहिंसा धर्म का पालन करना भी हर तरह नामुमकिन है।

इंसान ऐसा बना है कि अगर वह अपने बनाने वाले को समझ ले और यह समझ ले कि मैं उसी भगवान का प्रतिबिंब हूँ, तो दुनिया की कोई ताक़त उसके स्वमान को छीन ही नहीं सकती। उसके स्वमान का हनन कोई कर सकता है तो वह ख़ुद ही कर सकता है

हम जो बातें पढ़ते हैं वे सभ्यता की हिमायत करने वालों की लिखी बातें होती हैं। उनमें बहुत होशियार और भले आदमी हैं। उनके लेखों से हम चौंधिया जाते हैं। यों एक के बाद दूसरा आदमी उसमें फँसता जाता है।

समाज में रहने वाला मनुष्य; समाज की अनिच्छा से ही क्यों हो, साझेदार बनता है।

जो प्रौढ़ और तजुर्बेकार हैं, वे ही स्वराज्य भुगत सकते हैं, कि बे-लगाम लोग।

सबको हिंदी और उर्दू, दोनों लिपियों में लिखना सीखना चाहिए।

सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है।

अख़बार का एक काम तो है लोगों की भावनाएँ जानना और उन्हें ज़ाहिर करना, दूसरा काम है लोगों में अमुक जरूरी भावनाएँ पैदा करना और तीसरा काम है लोगों में दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर बेधड़क होकर उन्हें दिखाना।

किसी भी धर्म में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन चरित्र में दोष मालूम होने पर, उस पर ज़ोर देकर उस धर्म को कोसना निंदकों का तरीक़ा है, परंतु ऐसे दोष को दूसरों के लिए आचरण में लाने के नियम की भाँति पेश करना अधर्म हैं और उसका विरोध किया जा सकता है।

अंतःकरण के विषयों में, बहुमत के नियम का कोई स्थान नहीं है।

स्वदेशी वह है जो आत्मा को भाता है।

मुझे दुनिया को कोई नई चीज़ नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आए हैं।

आत्म विश्वास रावण जैसा नहीं होना चाहिए जो समझता था कि मेरी बराबरी का कोई है नहीं। आत्म विश्वास होना चाहिए विभीषण जैसा, प्रह्लाद जैसा। उनके जी में यह भाव था कि हम निर्बल हैं मगर ईश्वर हमारे साथ है और हमारी शक्ति अनंत है।

सत्य का मार्ग जितना सीधा है, उतना तंग भी है। यही बात अहिंसा की भी है।

ईश्वर जीवन है, सत्य है, प्रकाश है। वह प्रेम है, वह सर्वोच्च शिव है—शुभ है।

मैं ईश्वर की पूजा भी केवल सत्य के रूप में करता हूँ।

विद्यार्थियों को अपने-अपने धर्म के मूल तत्त्व जानने चाहिए, अपने-अपने धर्म ग्रंथों का साधारण ज्ञान होना चाहिए।

बग़ैर अनासक्ति के मनुष्य सत्य का पालन कर सकता है, अहिंसा का।

शास्त्रों ने हमें दो बहुमूल्य वचन दिए हैं। उनमें से एक है—‘अहिंसा परमो धर्मः’ और दूसरा है—‘सत्यान्नास्ति परो धर्मः।’

सत्य पर आरूढ़ रहना ही सत्याग्रह है।

  • संबंधित विषय : सच

मैं ईसा को महान् कलाकार मानता हूँ; क्योंकि उन्होंने सत्य की उपासना की, उसे ढूँढ़ा और अपने जीवन में उसे प्रगट किया।

सत्य और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

हम एक-दूसरे का भलाई में मुक़ाबला करें तो हम सब ऊँचे होकर काम कर सकते हैं।

महलों में रहने वाला आदमी राज्य नहीं चला सकता।

गौ-सेवा के बारे में दिल की बात कहूँ तो आप रोने लग जाएँ, और मैं रोने लग जाऊँ... इतना दर्द मेरे दिल में भरा हुआ है।

जो मनुष्य यह मेरा और वह तेरा मानता है, वह अनासक्त नहीं हो सकता।

हम पैदा हुए हैं सेवा करने के लिए। हम तय करें कि हम अपने मुल्क को ऊँचा ले जाएँगे, गिराएँगे नहीं।

सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, अपितु स्वयं कष्ट उठाकर सत्य की रक्षा करना।

सत्य का आग्रह हमेशा और हर हालत में करना ही चाहिए।

काम करने पर भी उसका बोझ लगे, यह अनासक्ति का रूप है।

श्री गोपालकृष्ण गोखले का नाम मेरे लिए एक पवित्र नाम है। वह मेरे राजनीतिक गुरु हैं।

अहिंसा कोई हल्दी-मिर्च तो है नहीं जो बाज़ार से मोल जाएगी।

मृत्यु के बीच जीवन अस्तित्व बना रहता है, असत्य के बीच सत्य टिका रहता है और अंधकार के बीच प्रकाश जीवित रहता है।

सही बरताव ही जीवन का सही रास्ता है, जो उसे जीने लायक और सुदंर बनाता है।

यदि अन्य सभी धर्मग्रंथ जलकर भस्म हो जाएँ तो भी 'गीता' अमर गुटके के सात सौ श्लोक यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि हिंदू धर्म क्या है और उसे जीवन में कैसे उतारा जा सकता है।

समाचारपत्र एक ज़बरदस्त शक्ति है, किंतु जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गाँव के गाँव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार कलम का निरंकुश प्रवाह भी नाश की सृष्टि करता है।

विरोधी को समझाकर समाधानी से काम करने का प्रयत्न करना, सत्याग्रही का पहला लक्षण और सत्याग्रह की पहली सीढ़ी है।

सत्य को जो पूरी तरह प्राप्त कर लेता है; वह पूर्ण हो जाता है, संपूर्ण हो जाता है।

  • संबंधित विषय : सच

Recitation