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माया पर सबद

‘ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या’—भारतीय

दर्शन में संसार को मिथ्या या माया के रूप में देखा गया है। भक्ति में इसी भावना का प्रसार ‘कबीर माया पापणीं, हरि सूँ करे हराम’ के रूप में हुआ है। माया को अविद्या कहा गया है जो ब्रह्म और जीव को एकमेव नहीं होने देती। माया का सामान्य अर्थ धन-दौलत, भ्रम या इंद्रजाल है। इस चयन में माया और भ्रम के विभिन्न पाठ और प्रसंग देती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

जग में मरन कहिये सांच

दरिया (बिहार वाले)

है बलवंती माया

हरिदास निरंजनी

जीव बटाऊ रे

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

बंदे मतकर इतना मान

मध्व मुनीश्वर

अवधू एह मुरदे का गाँव

दरिया (बिहार वाले)

साधो धोखे सब जग मारा

दरिया (बिहार वाले)

साधो नारि नैन सर बंका

दरिया (बिहार वाले)

साधो ऐसी खेती करई

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

तीर्थ बर्त कर्म रचि राखा

दरिया (बिहार वाले)

मन रे तूँ स्याणा नहीं

हरिदास निरंजनी

जग सूं प्रीति करे जिनि कोइ

तुरसीदास निरंजनी

समझि देखि मन मेरा रे

हरिदास निरंजनी

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