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श्रेष्ठ लेखक पर उद्धरण

दिवंगत होने पर भी सत्काव्यों के रचयिताओं का रम्य काव्य-शरीर; निर्विकार ही रहता है और जब तक उस कवि की अमिट कीर्ति पृथ्वी और आकाश में व्याप्त है, तब तक वह पुणयात्मा देव-पद को अलंकृत करता है।

भामह
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आसाधारण (महा)—कवियों के काव्यरूपी प्रयोगों के अनुरूप ही काव्यों को ले चलना चाहिए। पूर्ण सादृश्य कहीं देखा गया है, जैसा ‘रादमित्र’ में कहा गया है।

भामह
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