बाल गंगाधर तिलक के उद्धरण

ज़माने की हवा का रुख पहिचानकर देश के नेता अपने कार्यक्रम में सुधार नहीं करते हैं तो ज़माना आगे निकल जाएगा और नेता पीछे रह जाएँगे। ज़माना नेताओं के लिए रुका नहीं रहेगा।
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हिंदुस्तान में किसान राष्ट्र की आत्मा है। उस पर पड़ी निराशा की छाया को हटाया जाए तभी हिंदुस्तान का उद्धार हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम यह अनुभव करें कि किसान हमारा है और हम किसान के हैं।

सभी लोग हिंसा का त्याग कर दें तो फिर क्षात्रधर्म रहता ही कहाँ है? और यदि क्षात्रधर्म नष्ट हो जाता है तो जनता का कोई नाता नहीं रहेगा।
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स्वदेश ही नहीं समूचे विश्व का व्यवहार जिसके बल पर सुचारु रूप से चलता है, उसे ही धर्म कहते हैं।
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समाज में मान-सम्मान पाने के लिए गुण ही ज़्यादा प्रभावी सिद्ध होते हैं, जाति नहीं। हर बात में जाति का अड़ंगा डालने की बहुत बुरी आदत हमें पड़ गई है। आज जो हैं, वे ही जातियाँ काफ़ी हैं। अब कम-से-कम राजनीति में तो हम जातियाँ पैदा न करें। आने वाले जमाने का शिवाजी यदि मुसलमान के घर में पैदा होता है तो मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा। हमें गुणों की चाह है, जाति की नहीं।
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शराबियों की सरकार शराबबंदी नहीं करेगी। उसे अपनी आमदनी की चिंता है। शराब तो हमें ही बंद करनी होगी। इसके लिए शराब पीने वालों का बहिष्कार कीजिए।
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शरीर में प्राणों को जो स्थान है, वही राष्ट्र में नेता को प्राप्त है।
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संबंधित विषय : देह
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मैं न्याय माँग रहा हूँ, दया की भीख नहीं। जूरी में से एक भी व्यक्ति यदि यह राय दे देता है कि राजद्रोह के अभियोग से मैं पूर्णरूपेण निर्दोष हूँ, और मैंने जो कुछ भी क्रिया ठीक किया, तो मैं संतोष कर लूँगा।
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संबंधित विषय : न्याय
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बोलशेविकवाद (मार्क्सवाद), जैसा कि पश्चिम में प्रचारित है, भारत में सफल नहीं हो सकता। हमें अपने वेदांत को दृढ़ता से अपनाए रहना चाहिए तो हमारी अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाएँगी।
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