जीवन पर डायरी
जहाँ जीवन को स्वयं कविता
कहा गया हो, कविता में जीवन का उतरना अस्वाभाविक प्रतीति नहीं है। प्रस्तुत चयन में जीवन, जीवनानुभव, जीवन-संबंधी धारणाओं, जीवन की जय-पराजय आदि की अभिव्यक्ति देती कविताओं का संकलन किया गया है।
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : दो
30 अगस्त, ’31 ‘राजपूताना जहाज़’ जहाज़ पर मर्यादा प्रायः भंग हो गई है। 1927 में मैं आया था तो कपड़ों का स्वांग रचना पड़ा था। रात के कपड़े, दिन के कपड़े, पूरा झमेला था। घंटा भर तो प्राय: कपड़े बदलने में ही लगता था। धोती कुर्ता पहनना तो मानो गुनाह था। अब
घनश्यामदास बिड़ला
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : एक
21 अगस्त, ’31 ‘राजपूताना जहाज़’ बंबई में आज सबेरे से ही चहल-पहल थी। महात्मा जी कुछ काल के लिए भारतवर्ष में न रहेंगे, सबके चेहरे से यही भाव झलक रहा था। मुझे तो सद्भाग्य से ही यह संयोग मिल गया है कि जिस बोट से गांधी जी और मालवीयजी जाते हैं, उसी से मैं
घनश्यामदास बिड़ला
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : तीन और चार
31 अगस्त , ‘31 ‘राजपूताना जहाज़’ पंडित जी भी बात सुनिए। आज तीसरा दिन है पर पंडित जी की प्राय: एकादशी ही चलती है बात यह है कि पंडित जी का रसोईया बीमार है और आटे-सीधे के बक्से का कहीं पता नहीं। पंडित जी से लाख प्रार्थना की कि महाराज, बोट का चावल-आटा
घनश्यामदास बिड़ला
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : दस
9 सितंबर, 31 ‘राजपूतान' जहाज़’ अभी-अभी मौलाना मुझसे बाते कर गए है। मैंने पूछा कि जनाब की सेहत का क्या हाल है? कहने लगे—“जिंदा तो हूँ।” मैंने कहा कि "आप आ गए यह ख़ुशनसीबी है। अब लंदन पहुँचने से पहले इस झमेले को तय कर लीजिए; वर्ना दोनों कौमो की बर्बादी
घनश्यामदास बिड़ला
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : ग्यारह
11 सितंबर, '31 ट्रेन में आज सुवह मारसेल्स पहुँचे। वही पुरानी बात है। सैकड़ों चित्र खैंचने वाले अपने यंत्र लिए और बीसों पत्र-प्रतिनिधि मौजूद थे। स्टीमर पर आने की इजाज़त नहीं थी, तो भी भीड़ काफ़ी थी। लंदन, अमेरिका, जर्मनी, नारवे आदि के पत्र-प्रतिनिधि
घनश्यामदास बिड़ला
दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : सात
5 सितंबर, 31 'राजपूताना जहाज़’ भोपाल ने महात्मा जी को बुलाकर कहा कि हिंदू-मुसलमान—समस्या सुलझाने के लिए आप पृथक् निर्वाचन स्वीकार कर लें। महात्मा जी ने कहा कि न तो मुझे पृथक् निर्वाचन से शिकायत है, न संयुक्त निर्वाचन का मोह हैं, किंतु मैं अंसारी