चक पॉलनीक के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
चक पॉलनीक के प्रसिद्ध
और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता तुम कितने भी सावधान रहे आओ, एक एहसास तुम्हें हमेशा सालता रहेगा कि तुमसे कुछ छूट रहा है। तुम्हारी चमड़ी के ठीक नीचे धड़कता एक एहसास कि तुमने सब कुछ नहीं भोगा है। दिल के भीतर एक डूबता एहसास कि जिन पलों से तुम गुज़रे हो, उन पर और ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए था। सच कहूँ तो इनके आदती हो जाओ, एक रोज़ तुमको तुम्हारी सारी ज़िंदगी यूँ ही महसूस होने वाली है।
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तुम ख़रीदते हो फ़र्नीचर। दुहराते हो ख़ुद से कि आख़िरी होगा यह सोफ़ा जिसकी ज़रूरत है इस जीवन में। अगले कुछ वर्षों तक तुम संतुष्ट रहते हो कि जो भी गुज़रे, सोफ़े के सवाल को तुमने सुलझा लिया। और फिर बर्तन, एक बढ़िया बिस्तर, पर्दे और तुम ग़ुलाम हो जाते हो अपने ही हसीन घोंसले के। वे वस्तुएँ जिनके तुम मालिक बनने निकले थे, अब तुम्हारी मालिक हैं।
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हम इतिहास के बीचोबीच पैदा हुए हैं, यार! न लक्ष्य, न ठिकाना। कोई युद्ध नहीं हमारे सामने। न कोई मंदी। हमारे सारे युद्ध अंदरूनी हैं, आध्यात्मिक हैं। हमारे लिए महान मंदी हमारा जीवन ही है। हम सबके बचपन टेलीविज़न देखते गुज़रे हैं—इस यक़ीन के साथ कि एक रोज़ हम भी भी लखपति होंगे, सिने-स्टार होंगे, रॉकस्टार होंगे; लेकिन नहीं होंगे हम। और धीरे-धीरे खुल रही है यह बात हमारे सामने। और हम नाराज़ हैं इस पर, बेहद नाराज़ हैं।
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