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इमैनुएल कांट

1724 - 1804

प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक।

प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक।

इमैनुएल कांट के उद्धरण

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सुख के नियम : कुछ करना, किसी से प्रेम करना, किसी चीज़ की आशा करना।

जो जानवरों के प्रति क्रूर होता है, वह मनुष्यों के प्रति भी कठोरता से पेश आता है। किसी व्यक्ति के हृदय को, जानवरों के प्रति उसके किए व्यवहार से हम जान सकते हैं।

इंद्रियों से ही हमारा सभी ज्ञान प्रारंभ होता है, फिर समझ से आगे बढ़ता है और अंततः तर्क पर समाप्त होता है। तर्क से ऊपर कुछ नहीं है।

मेरे ऊपर का तारों भरा आकाश और मेरे भीतर के नैतिक नियम—ये दो चीज़ें मन को अनंत विस्मय और श्रद्धा से भर देती हैं।

सभी अच्छी किताबों का अध्ययन करना, अतीत के श्रेष्ठ मस्तिष्कों के साथ संवाद करने जैसा है।

सोचने का साहस करो!

मनुष्य को अनुशासित होना चाहिए, क्योंकि प्रकृति से ही वह कच्चा और जंगली है।

पृथ्वी पर शांति के लिए, मनुष्य का नए रूप में विकास होना चाहिए जो पहले संपूर्णता को देख सके।

धर्मग्रंथों का अंत ही नैतिकता की उत्पत्ति है।

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स्थान और समय वह ढाँचा हैं, जिसके भीतर मन अपनी वास्तविकता के अनुभव का निर्माण करने के लिए बाध्य है।

मनुष्य के टेढ़े-मेढ़े स्वभाव से कोई भी सीधी चीज़ नहीं बन सकती।

जितना व्यस्त हम रहते हैं, जीवित होने का अनुभव और जीवन के प्रति सचेत होने का भाव—उतना ही ज़्यादा होता है।

जो व्यक्ति स्वयं को कीड़ा बना ले; वह बाद में शिकायत नहीं कर सकता, यदि लोग उस पर पैर रख दें।

सुंदरता जहाँ सीमित होती है—महानता वहाँ असीम।

सामूहिक लोगों की प्रशंसा मत खोजो, यह ईमानदारी और विधि से कम ही मिलती है।

जो हमारे पास है, हम उससे संपन्न नहीं होते; बल्कि जो हम उसके बिना कर सकते हैं, उससे होते हैं।

यदि सत्य उन्हें मार देगा, तो उन्हें मरने दो।

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मुझे ज्ञान को नकारना पड़ा कि आस्था के लिए जगह बने।

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