कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के उद्धरण


जीवन का आदर्श साँचे में ढाला पुरजा नहीं है, वृक्ष पर खिला पुष्प है। वह बटन दबाते ही खिंच जाने वाला फ़ोटो नहीं, ब्रश और उँगलियों की कारीगरी से धीरे-धीरे बनने वाला चित्र है।
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मृत्यु के संबंध में मनुष्य के ज्ञान कोष का सर्वोतम रत्न यही है कि अधिक से अधिक जीने का पुरुषार्थ करे, पर उसे मनुष्य की तरह मरने का जब भी अवसर मिले, चूके नहीं।
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जीवन का सच्चा पथ यह नहीं है कि जो हमें प्राप्त नहीं है, उसके लिए हम रोते रहें। जीवन का सच्चा पथ यह है कि यत्न या योग से जो हमने पा लिया उसे पहिचानें, उसे अपने अनुकूल बनाएँ, उसमें रस लें और संतोष का सुख पाएँ।
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भारतीय जीवन धीरे-धीरे जीने का जीवन है। उसमें उद्वेग और आवेग नहीं, संतोष और शांति ही उसके मूल आधार हैं।
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कम बातें कीजिए, कम में बातें कीजिए और काम की ही बातें कीजिए।
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संबंधित विषय : संवाद
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उचित पाबंदी को निभाकर चलना उतना ही कल्याण-कारी है, जितना अनुचित पाबंदी को तोड़ कर चलना।
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मृत्यु जीवन का अंत है, यह उनकी राय है जो जीते नहीं, जिन्हें जीना पड़ता है। मृत्यु जीवन की विवशता है, यह उनकी राय है, जिन्हें और चाहे जो आए, जीना नहीं आता।
मृत्यु जीवन का मूल्य है, यह उनकी राय है, जिन्हें जीवन का ज्ञान है कि वह है क्या? पर मृत्यु से हम अपने जीवन का पूरा मूल्य वसूल करेंगे, यह हनकी घोषणा है जो जीवन को जीने की तरह जीते हैं।
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दे देवत्व, ले राक्षसत्व और दे-ले मनुष्यत्व। जहाँ बैठकर हम जीवन की इस दे-ले का समन्वय करना सीखते हैं, उसी प्रयोगशाला का नाम घर है।
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मनुष्य में देवता भी रहता है और दानव भी। देवता की प्राण-प्रतिष्ठा और दानव का दलन करने के लिए संघर्ष करना ही मानव-जीवन है।
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संबंधित विषय : मनुष्यता
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हम मर्यादा को तोड़ते हैं, तो उच्छृंखल हो जाते हैं और बंधन को तोड़ते हैं तो विद्रोही।
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