मनुष्य जो स्वभावतः ही सृष्टिकर्ता, इसीलिए वह हरेक चीज़ को अपनी रचना में परिणत करके उसमें आश्रय लेता है, केवल विधाता की सृष्टि में आरामदेह बिछौना नहीं बनाता।
कविता और कला के निर्माताओं का भी कर्त्तव्य है कि वे आधुनिक देश-काल के समीकरण द्वारा व्युत्पादित सृष्टि, स्थिति और प्रलय-संबंधी सिद्धांतों का उपयोग अपनी अमर कृतियों में कौशल के साथ करें।