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शृंगार पर कविताएँ

सामान्यतः वस्त्राभूषण

आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, जहाँ भक्त स्वयं को पत्नी और इष्टदेव को पति के रूप में देखता है। इस चयन में शृंगार विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

शृंगार

आलोकधन्वा

स्त्री के पैरों पर

प्रियंका दुबे

प्रेमिकाएँ

सुदीप्ति

रंगरसिया

सुशोभित

घास के घरउँदे

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

एक नीला दरिया बरस रहा

शमशेर बहादुर सिंह

रागिनी

राजेन्द्र शाह

शेड

नवीन रांगियाल

चैत

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

सोन-मछली

अज्ञेय

काजल

संजय शेफर्ड

आज रात शृंगार करूँगी

विद्यावती कोकिल

काजल

सुलोचना

ये लहरें घेर लेती हैं

शमशेर बहादुर सिंह

बुख़ार

शिव कुमार गांधी

एक ठोस बदन अष्टधातु का-सा

शमशेर बहादुर सिंह