हुआन रामोन हिमेनेज़ के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
हुआन रामोन हिमेनेज़
के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
सच्चे लेखक का सिद्धांत : अच्छा काम, अच्छी कविता की तरह संक्रामक होता है। इसका आरंभ एक ख़ामोश कमरे में होता है। फिर यह लहर की तरह समाज में फैलता है और सामाजिक जीवन को बदल डालता है। एक व्यक्ति की पूर्णता की पिपासा से गहरा सामाजिक बदलाव जन्म ले सकता है।
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काम करने का अर्थ हड़बड़ी में ढेर सारा कुछ करना, या इससे भी अधिक, कई बार करना नहीं : इसका अर्थ है अद्वितीय, अत्यंत पूर्णता लिए हुए चीज़ों का सृजन करना।
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चीज़ों पर हम दबाव न डालें, हर चीज़ को अपने मुक़र्रर वक़्त पर आने दें, अपने निराले तरीक़े से, अपनी लयों को हमारी लयों में विलीन करते हुए।
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हम अपने देश का ‘पुनर्निर्माण’ बिना उसकी भाषा के पुनर्निर्माण के नहीं कर सकते। लोगों के बात करने का लहजा बदलिए और देखिए कि आपने उनके व्यवहार को बदल दिया है।
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बढ़िया काम करने के लिए अनिवार्य है कि हम नॉस्टेल्जिया को पराजित करें—समय में कहीं और रहने की अस्पष्ट इच्छा को परास्त करें और वर्तमान को पकड़ कर रखें, और वर्तमान का पकड़ में आना मुश्किल है। जब हम उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाते हैं, हमारी समस्याएँ हमें कहीं और अतीत में या भविष्य में खींच ले जाती हैं। काम क्षणों को परिपक्व करने का एक तरीक़ा है—उन्हें गुरुता प्रदान करने का एक ढंग। काम के ज़रिए हम वर्तमान को टिकाऊपन की दावत देते हैं। अपने काम के ज़रिए वर्तमान को ग्रहण करो और फिर देखो, तुम्हारा काम हमेशा वर्तमान रहेगा।
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अगर आप किसी और चीज़ के लिए एक को छोड़ते हैं, तो लय बदलिए… और उन तूफ़ानी लयों से सचेत रहिए जो हमें खींचकर नीचे घसीटे लिए जाती हैं।
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आइए, विस्मरण का सम्मान करें, विस्मरण की विलक्षणताएँ—जो हमें चिंतन की अनुमति देती हैं, हर दूसरी चीज़ से अलग, वर्तमान की अद्वितीयता।
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बोलने से बेहतर चुप रहना, चुप रहने से बेहतर स्वप्न देखना, स्वप्न देखने और सोचने से बेहतर है पढ़ना। जब हम पढ़ते हैं, चुप्पी स्वतः शांत हो जाती है, और हम किसी के संग सोच या स्वप्न देख सकते हैं।
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चीज़ों को ख़राब ढंग से करने से आपको यह हक़ नहीं मिल जाता कि आप उस व्यक्ति से जल्दबाज़ी की माँग करें जो अधिक बढ़िया तरीक़े से काम करता है।
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कला के मामलों में धीमे से बढ़ो : प्रत्येक क्षण को वह देने दो जो उसे देना है। वक़्त के आगे भागने की कोशिश न करो।
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हम हमेशा ही चिंतित रहते हैं, बदहवासी की हद तक, कि हम कुछ याद कर पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे। लेकिन हम याद रख पाते हैं या नहीं—इस बात का कोई मतलब नहीं। जो कुछ भी हमें याद है, हम भूल जाएँगे और वह भी जो हमें याद नहीं।
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एकदम सही-सही बोलिए और तब आप कम बोलेंगे, शायद बिल्कुल नहीं—‘‘बोलने से बेहतर है, ख़ामोश रहना।’’
अपनी जीवन-तुला के पलड़ों पर विस्मरण को भी उतना ही वज़न दीजिए जितना स्मरण को। पलड़ों के संतुलन-बिंदु के प्रति सचेत रहिए।
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