माघ के उद्धरण


महान पुरुष तो शरणागत शत्रुओं पर भी अनुग्रह करते हैं। बड़ी नदियाँ अपनी सपत्नी पहाड़ी नदियों को भी सागर तक पहुँचा देती हैं।

बुद्धिमान क्रोध के वेग को जीत लेते हैं तथा क्षुद्र लोग क्रोध से तत्काल ही पराजित हो जाते हैं।
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कार्य-सिद्धि के उपायों में लगे रहने वाले भी असावधानी से अपने कार्यों को नष्ट कर देते हैं।
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छोटे लोगों के गुण का वर्णन करने वाला अन्य कोई नहीं मिलता, अतएव वह स्वयं ही उसे कहता है।
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विपक्ष का विनाश किए बिना प्रतिष्ठा दुर्लभ रहती है। धूलि को कीचड़ बनाए बिना पानी नहीं ठहरता।
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तीक्ष्ण बुद्धि वाले लोग बाण की भाँति बहुत थोड़ा स्पर्श करते हैं किंतु अंतः प्रविष्ट हो जाते हैं और मंद बुद्धि वाले लोग पत्थर की भाँति बहुत स्पर्श करने पर भी बाहर ही रह जाते हैं।
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संबंधित विषय : मनुष्य
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अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि—यही दो नीति की बात हैं। इन्हीं दोनों बातों को स्वीकार कर कुशल मनुष्य अपनी वाक्पटुता का विस्तार करते हैं।
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महापुरुषों का यह नित्य का व्यवहार है कि वे परस्पर उपकार करते हैं।
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संबंधित विषय : व्यवहार
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शत्रुओं के ऊँचे मस्तक पर लीला पूर्वक पैर रखे बिना ही आलंबनरहित कीर्ति स्वर्ग कैसे चढ़ सकती है?
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संबंधित विषय : शत्रु
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दुष्ट लोग अपने दोष के संबंध में जन्मांध से होते हैं और दूसरे का दोष देखने में दिव्य नेत्र वाले होते हैं। वे अपने गुण का वर्णन करने में गला फाड़-फाड़कर बोलते हैं और दूसरे की स्तुति के समय मौन व्रत धारण कर लेते हैं।

अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है।
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संबंधित विषय : प्रेम
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दुष्ट बुद्धि वाला व्यक्ति अपने दोष से महापुरुषों का अतिक्रमण करता हुआ नष्ट होता है। अग्नि स्वेच्छा से शलभों को ईंधन नहीं बनाती।
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