महान पुरुष तो शरणागत शत्रुओं पर भी अनुग्रह करते हैं। बड़ी नदियाँ अपनी सपत्नी पहाड़ी नदियों को भी सागर तक पहुँचा देती हैं।
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कार्य-सिद्धि के उपायों में लगे रहने वाले भी असावधानी से अपने कार्यों को नष्ट कर देते हैं।
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अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि—यही दो नीति की बात हैं। इन्हीं दोनों बातों को स्वीकार कर कुशल मनुष्य अपनी वाक्पटुता का विस्तार करते हैं।
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तीक्ष्ण बुद्धि वाले लोग बाण की भाँति बहुत थोड़ा स्पर्श करते हैं किंतु अंतः प्रविष्ट हो जाते हैं और मंद बुद्धि वाले लोग पत्थर की भाँति बहुत स्पर्श करने पर भी बाहर ही रह जाते हैं।
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