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भवभूति

भवभूति के उद्धरण

जो वेदों का अध्ययन तथा उपनिषद्, साँख्य और योगों का ज्ञान है, उनके कथन से क्या फल है? क्योंकि उनसे नाटक में कुछ भी गुण नहीं आता है। यदि नाटक के वाक्यों की प्रौढ़ता और उदारता तथा अर्थ-गौरव है, तो वही पांडित्य और विदग्धता की सूचक है।

नारियों का चित्त फूल जैसा कोमल होता है।

सभी वस्तुओं की अति दोष उत्पन्न करती है।

जो कोई इस कृति के प्रति अवज्ञा दिखाते हैं वे जानते हैं कि उनके लिए मेरी कृति नहीं है। अवश्य ही मेरा कोई समानधर्मा पुरुष उत्पन्न होगा, क्योंकि काल तो अनंत है और पृथ्वी विशाल है।

दुष्ट का निग्रह किसके हृदय को अच्छा नहीं लगता?

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सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है।

दृढ़ व्याकुलता से युक्त हृदय विदीर्ण होता है, लेकिन दो टुकड़ों में विभक्त नहीं होता। शोक से व्याकुल शरीर मोह को धारण करता है, लेकिन चैतन्य को नहीं छोड़ता। अंतःकरण का संताप शरीर को जलाता है, लेकिन भस्म नहीं करता, उसी तरह हृदय आदि मर्मस्थल का छेदन करने वाला भाग्य का प्रहार करता है, लेकिन जीवन को नष्ट नहीं करता है।

बिंब ग्रहण करने में स्वच्छ मणि समर्थ है, मिट्टी आदि नहीं।

मंद हास्य से उज्ज्वल दृष्टि का वितरण करो।

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