
जो मायने रखता है वह आपकी त्वचा का रंग नहीं है, बल्कि वह शक्ति है जिसकी आप सेवा करते हैं और लाखों लोगों को धोखा देते हैं।

आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।
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पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है।

पराधीनता की ख़ास नींव अपने धर्म का नाश और दूसरे के धर्म की सेवा करने से पड़ती है।

जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।