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नश्वर पर सबद

मानव शरीर की नश्वरता

धार्मिक-आध्यात्मिक चिंतन के मूल में रही है और काव्य ने भी इस चिंतन में हिस्सेदारी की है। भक्ति-काव्य में प्रमुखता से इसे टेक बना अराध्य के आश्रय का जतन किया गया है।

सभना मरणा आइआ

गुरु नानक

तेरो कपरा नहीं अनाज

दरिया (बिहार वाले)

बंदे मतकर इतना मान

मध्व मुनीश्वर

सोई दिन आवेगा

हरिदास निरंजनी

मन रे तूँ स्याणा नहीं

हरिदास निरंजनी

समझि देषि कुछ नांही रे

हरिदास निरंजनी

सजन सनेहरा वे

हरिदास निरंजनी

साधो, इह तनु मिथिआ जानो

गुरु तेगबहादुर

सखि हे ध्रिग ध्रिग जिवन

दरिया (बिहार वाले)

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