Siddheshwar Singh's Photo'

सिद्धेश्वर सिंह

1963 | ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश

‘कर्मनाशा’ कविता-संग्रह के कवि। बतौर अनुवादक भी उल्लेखनीय।

‘कर्मनाशा’ कविता-संग्रह के कवि। बतौर अनुवादक भी उल्लेखनीय।

सिद्धेश्वर सिंह के उद्धरण

89
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

आटे को जितनी बार छाना जाए थोड़ा-बहुत चोकर तो निकल ही आता है।

जिस किताब में अच्छी कविता होती है, उसके पास दीमकें नहीं फटकतीं।

फूलों को तोड़कर गुलदान में सजाने वाले शायद ही कभी किसी बीज का अंकुरण देख पाते होंगे।

भरोसा बनाए रखो कि तुम्हें भाषा पर सचमुच भरोसा है और हाँ, इसकी कोई समय-सीमा नहीं।

कितना अच्छा होता कि जिस संख्या में कवियों के संग्रह छपे बताए जाते हैं, लगभग उतनी ही संख्या में उन्होंने कविताएँ भी लिखी होतीं।

आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।

बहुत सारी क़लमों की स्याही सही शब्द लिखे जाने की प्रतीक्षा में रुलाई बनकर लीक हो जाती है।

प्रशंसा का अधिकांश भाप बनकर उड़ जाने के लिए ही बना होता है।

आजकल बाज़ार में ऐसे पपीते भी मिलते हैं, जिन्हें काटो तो उनके भीतर से कोई बीज नहीं निकलता।

जो चीज़ कम होती है, उसकी याद लंबे समय तक आती रहती है।

किसी ख़बर का पीछा कर उसे सबसे पहले पकड़ने के बदले उसके उत्स को खोजना ज़रूरी काम है।

पानी एक ऐसी चीज़ है जिसे बहुत देर तक बिना बोले भी देखा जा सकता है।

यदि स्वयं को यह पता चल सके कि कमज़ोर कड़ी कहाँ है तो प्रसिद्ध होना बहुत आसान हो जाता है।

कोयल के कूकने और गेट के भीतर अख़बार के गिरने की आवाज़ एक साथ आए तो सबसे पहले क्या—कान या आँख?

लोग बड़ी गंभीरता से ऐसा बताते हैं कि आजकल सब कुछ ‘की-पैड’ से लिखा जाता है।

पाक कला की ढेर सारी किताबें पढ़ने के बाद पता चलता है कि खाना पकाने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है—धैर्य।

चलते थ्रेशर को मुग्ध भाव से देखते किसान ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ जो भूसा दूर जाकर गिरा और अनाज पास में।’’

वाष्पीकरण एक सहज क्रिया है। यह सिर्फ़ द्रवों पर ही लागू हो ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं।

कविता के होने और लिखे जाने के बीच के समय का आकलन किसी घड़ीसाज़ से पूछकर क्या हासिल?

कुछ कविताएँ विजिटिंग-कार्ड और यात्रा-टिकट की तरह भी प्रयोग में लाई जाती हैं।

काग़ज़ केवल शब्द लिखने के लिए नहीं बना है। इस पर ध्वनि, रस, गंध और स्पर्श को भी लिखकर देखा जाना चाहिए।

कवि कहलाने का बैज, नेमप्लेट या मोनोग्राम किसी दुकान पर नहीं मिलता। वैसे, यह चाहिए ही क्यों?

  • संबंधित विषय : कवि

कम बोलना चाहिए। ऐसा इसलिए कि कविता में बोले जाने की बात को ‘कह’ देने की गुंजाइश बनी रहती है।

चींटियाँ अपने भार से कई गुना अधिक वज़न उठाकर आराम से चल लेती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे चींटियाँ हैं।

तितलियों की उड़ान का उद्देश्य क्या उन पर लिखी उन कविताओं की तलाश है, जिनमें सचमुच के पराग-कण होते हैं?

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए