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शमशेर बहादुर सिंह

1911 - 1993 | देहरादून, उत्तराखंड

समादृत कवि-गद्यकार और अनुवादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत कवि-गद्यकार और अनुवादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

शमशेर बहादुर सिंह के उद्धरण

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सारी कलाएँ एक-दूसरे में समोई हुई हैं, हर कला-कृति दूसरी कलाकृति के अंदर से झाँकती है।

  • संबंधित विषय : कला

भाषा की जान होता है मुहावरा।

प्रकाशन-प्रदर्शन औसत-अक्षम कलाकार को खा जाता है।

अगर कविता (जिसे कहते हैं) ‘जीवन से फूटकर’ निकलती है, तो उसमें जीवन की सारी बेताब उलझनें और आशाएँ और शंकाएँ और कोशिशें और हिम्मतें कवि के अंदर की पूरी ईमानदारी के साथ अपने सरगम के पूरे बोल बजाने लगेंगी।

आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।

सरलता का आकाश जैसे त्रिलोचन की रचनाएँ।

व्यक्ति-मन होता है जन-मन के लिए।

…जो कविता का विकास होता है, वो रचना की अपनी शर्तों पर होता है।

कविता को उस तरह नहीं रिवाइज़ किया जा सकता, जैसे किसी निबंध या स्पीच को।

भाषा की अवहेलना किसी भी रचना को सहज ही साहित्य के क्षेत्र से बाहर फेंक देती है और शिल्प की अवहेलना कला के क्षेत्र से।

कविता में सामाजिक अनुभूति काव्य-पक्ष के अंतर्गत ही महत्त्वपूर्ण हो सकती है।

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है।

  • संबंधित विषय : कला

क्यों—क्यों हम एक सरल प्लॉट अपने जीवन का नहीं बना सकते? विश्वव्यापी घटनाएँ हरेक के जीवन में गई हैं।

कवि का कर्म अपनी भावनाओं में, अपनी प्रेरणाओं में, अपने आंतरिक संस्कारों में, समाज-सत्य के मर्म को ढालना—उसमें अपने को पाना है, और उस पाने को अपनी पूरी कलात्मक क्षमता से पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त करना है, जहाँ तक वह कर सकता हो।

  • संबंधित विषय : कवि

अर्थ प्राणों में समाता है, निकलता नहीं।

निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता।

भाषा की जान होता है मुहावरा।

काव्य-कला समेत जीवन के सारे व्यापार एक लीला ही हैं—और यह लीला मनुष्य के सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिए निरंतर संघर्ष की ही लीला है।

एक तरह से हर कवि अपने आपको कम-ओ-बेश फ़ुलफ़िल करता है। वह अपनी unique quality को discover करता है। साहित्य, साधना का मार्ग है।

  • संबंधित विषय : कवि

अनोखी और अजीब और नई चीज़ें ज़रूरी नहीं कि बेशक़ीमती भी हों। वह परखने पर हल्की और घटिया, बल्कि सुबह की शाम बासी भी हो सकती हैं—एकदम बासी।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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