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समृद्धि पर उद्धरण

जीवन-शुद्धि और जीवन-समृद्धि यही हमारा आदर्श हो।

काका कालेलकर

ईमानदारी वैभव का मुँह नहीं देखती, वह तो मेहनत के पालने पर किलकारियाँ मारती है और संतोष पिता की तरह उसे देखकर तृप्त हुआ करता है।

रांगेय राघव