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वाल्टर बेंजामिन

1892 - 1940 | बर्लिन

विख्यात जर्मन चिंतक, लेखक और मार्क्सवादी विचारक।

विख्यात जर्मन चिंतक, लेखक और मार्क्सवादी विचारक।

वाल्टर बेंजामिन के उद्धरण

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प्रत्येक भावमुद्रा एक घटना है—अपने आप में एक नाटक। वह स्टेज जिस पर यह नाटक खेला जाता है—वह विश्व रंगमंच है, जो स्वर्ग की ओर खुलता है।

सच्चे कद का पुस्तक उधार लेने वाला; अभी जिसकी हमने कल्पना की, वह पुस्तकों का चिरकालीन संग्राहक सिद्ध होता है, उस तेवर के सबब नहीं जो वह अपने उधार खजाने की सुरक्षा के लिए करता है और इसलिए भी नहीं कि वह कानून की दैनंदिन दुनिया से आते हुए हर तकाजों की अनसुनी करता जाता है, बल्कि इसलिए क्योंकि वह उन पुस्तकों को पढ़ता ही नहीं।

अनुवादक के लिए बुनियादी तत्व शब्द हैं—वाक्य नहीं।

साहित्य की समस्त महान कृतियाँ किसी शैली (genre) की स्थापना करती हैं या विसर्जन—अन्य शब्दों में यों कहें, कि वे विशिष्ट घटनाएँ हैं।

पुस्तकें एकत्र करने के प्रचलित तरीकों में, संग्राहक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त तरीका यही होगा कि वह किसी पुस्तक को उधार लेकर उसे लौटाए नहीं।

अनुवाद में विश्वसनीयता और स्वतंत्रता, पारंपरिक तौर से परस्पर विरोधी प्रवृतियाँ मानी गई हैं।

काफ़्का जो महत्त्वपूर्ण बात देखता था, वह भावमुद्रा थी।

वास्तव में किसी संग्रह को हासिल करने का सबसे ठीक तरीका उसे उत्तराधिकार में पाना है। क्योंकि संपत्ति के प्रति किसी संग्राहक की प्रवृत्ति ‘पूंजी के प्रति मालिक की जिम्मेदारी की भावना’ से पनपती है अतः सर्वश्रेष्ठ अर्थ में, यह किसी उत्तराधिकारी की प्रवृत्ति ही है कि किसी संग्रह का अत्यंत विशिष्ट लक्षण प्रायः उसकी हस्तांतरणीयता होता है।

अगर मेरा अनुभव कोई प्रमाण बन सके तो कह सकता हूँ कि कोई आदमी किसी उधार पुस्तक को किसी अवसर पर लौटा ही दे मगर पढ़े शायद ही।

अत्यंत चर्चित लेखकों को पढ़ना मैं तभी पसंद करता हूँ जब वे पुराने हो जाते हैं।

जब एक बार आप पुस्तकों के बक्सों के पहाड़ों के समीप जा पहुँचते हो ताकि उपयुक्त पुस्तकों को उनमें से खोद निकालो और उन्हें दिन के, बल्कि शायद रात के उजाले के सामने उजागर कर दो, तब ओह, कैसी-कैसी स्मृतियाँ आपके दिमाग़ में झूम पड़ती हैं!

अत्यंत मामूली चीजों का भी अपना वजन होता ही है।

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