प्रतीक्षा पर दोहे
प्रतीक्षा या इंतिज़ार
किसी व्यक्ति अथवा घटित के आसरे में रहने की स्थिति है, जहाँ कई बार एक बेचैनी भी अंतर्निहित होती है। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतीक्षा के भाव-प्रसंगों का उपयोग करती कविताओं से एक अलग चयन।
तिय पिय सेज बिछाइयों, रही बाट पिय हेरि।
खेत बुवाई किसान ज्यों, रहै मेघ अवसेरि॥
अंषड़ियाँ झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि॥
प्रियतम का रास्ता देखते-देखते आत्मा रूपी विरहिणी की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा है। उसकी दृष्टि मंद पड़ गई है। प्रिय राम की पुकार लगाते-लगाते उसकी जीभ में छाले पड़ गए हैं।
पीपा पी पथ निरखता, आँखा झाँई पड़ी।
अभी पी अडग अलख लखूँ, अडिकूं घड़ी-घड़ी॥
कुंजा ज्यों कुरल्या करै, बिरही जणा को जीव।
पेपा आगि न बुझ सके, जब लग मिले न पीव॥
कहति ललन आए न क्यौं, ज्यौं-ज्यौं राति सिराति।
त्यौं-त्यौं वदन सरोज पैं, परी पियरई जाति॥
ये समीर तिहुँ लोक के, तुम हौ जीवन दानि।
पिय के हिय में लागि के, कब लगिहौ हिय आनि॥
जमुना तीर, समीर तहँ, बहै त्रिबिधि सुख होय।
अजौं न आयौ क्यौं न पिय, करैं दोर द्रग दोय॥
पिउ हउं थक्किय सयलु दिणु तुह विरहरग्गि किलंत।
थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत॥