
तंग मज़हबों में सीमित न हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।

वात्सल्य, अभयदान की प्रतिज्ञा, आर्त-दुःख-निवारण, उदारता, पाप के विनाश और असंख्य कल्याण पदों की प्राप्ति कराने के कारण सभी लोकों के लिए लक्ष्मीपति नारायण ही सेव्य हैं। इस विषय में प्रह्लाद, विभीषण, गजेंद्र, द्रौपदी, अहल्या और ध्रुव- ये सभी साक्षी हैं।

भारतीय इतिहास अत्यंत दुर्गम है। इसका शोध केवल इतिहास का विवेचन नहीं है, वह मनुष्य की समस्त वासनाओं और अपूर्णता तथा पूर्णताओं के क्रमिक विकास का अध्ययन है, जो बाह्य रूप में सभ्यता है ओर आंतरिक रूप में अध्यात्म की उन्नति है।