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भाषण पर उद्धरण

यह जगत का निजी अनुभव है कि आधी छटाँक-भर आचरण का जितना फल होता है उसका मन-भर भाषणों अथवा लेखों का नहीं होता।

महात्मा गांधी

भाषण अनेक बार हमारे आचरण की ख़ामियों का दर्पण होता है। बहुत बोलने वाला कदाचित् ही अपने कहे का पालन करता है।

महात्मा गांधी

प्रतिक्षण अनुभव लेता हूँ कि मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना ही चाहिए तो कम से कम बोलो। एक शब्द से चले तो दो नहीं।

महात्मा गांधी

भाषण की असलियत दिए जाने में है, लिए जाने में नहीं।

श्रीलाल शुक्ल

एक अच्छा श्रोता उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना अच्छा वक्ता होना।

अमृतलाल वेगड़

दयार्द्र होकर दान करने से भी कहीं श्रेष्ठ है प्रसन्न मुख के साथ मधुर वचन व्यक्त करना।

तिरुवल्लुवर