
पर्व के समय मेज़ के आस-पास बातचीत में, हम पहले नाम के अलावा और कुछ नहीं होंगे; धीरे-धीरे हम पहचानहीन हो जाएँगे, जब तक कि हम सुदूर पीढ़ी की विशाल गुमनामी में ग़ायब नहीं हो जाते हैं।

मनुष्य के रसलोक की रक्षा में पर्वों की अखंड यात्रा की विधायक भूमिका रही है। भारतीय पर्व भारत की स्वकीय पहचान को उजागर करते हैं।


लाख निहोरा करें, कृत्रिमता से पर्व का समझौता नहीं होता।
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पर्व-पर्व नहीं होता यदि उसके स्पर्श से मन की गाँठ नहीं खुलती, मैल नहीं धुलती।

मन पर्व-संस्पर्श से निहाल हो जाता है।

मन के स्तर-स्तर पर मैल ज़मी हो और पर्व का आयोजन करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा हो तो पर्व ऐसे आयोजन से मुँह फेर लेता है।