
हम बहुधा अपनी झेंप मिटाने और दूसरों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए कृत्रिम भावों की आड़ लिया करते हैं।

लाख निहोरा करें, कृत्रिमता से पर्व का समझौता नहीं होता।
हम बहुधा अपनी झेंप मिटाने और दूसरों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए कृत्रिम भावों की आड़ लिया करते हैं।
लाख निहोरा करें, कृत्रिमता से पर्व का समझौता नहीं होता।