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रमण महर्षि के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

रमण महर्षि के प्रसिद्ध

और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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समय केवल एक विचार है। हमारे पास केवल सत्य है। आप जो सोचते हैं, वह प्रकट हो जाता है। अगर आप समय कहें, तो यह समय है।

रमण महर्षि

केवल इस आत्मानुसंधान : ‘मैं कौन हूँ’ के साथ ही मन को शांत कर सकते हैं।

रमण महर्षि

एकांत मनुष्य के मन में है।

रमण महर्षि

मनुष्य को सिद्धांतों की चर्चा करने की बजाय अभ्यास पर बल देना चाहिए।

रमण महर्षि

जब मन अपने ही बारे में अनुसंधान करना बंद कर देता है तो जान लेता है कि मन जैसी कोई वस्तु नहीं है। यही सबके लिए सीधी राह है।

रमण महर्षि

अपने मूल स्वभाव को जानना ही मुक्ति है।

रमण महर्षि

सभी प्रकार के तप और संयमों से गुज़रकर व्यक्ति वही बनता है, जो वह पहले से है।

रमण महर्षि

मन केवल विचार है। सभी विचारों में, केवल ‘मैं’ का विचार ही मूल है। इस तरह मन केवल ‘मैं’ का विचार ही है। ‘मैं’ का विचार कब पैदा होता है? इसे अपने भीतर तलाश करो, तो ये ओझल हो जाता है। यह बुद्धि है। जहाँ से ‘मैं’ का लोप होता है, वहीं से ‘मैं-मैं’ का जन्म होता है। यही पूर्णम है।

रमण महर्षि

अँधेरे की तरह अज्ञान भी सत्य नहीं।

रमण महर्षि

हर कोई अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में आत्मा का हत्यारा है।

रमण महर्षि

जानना ही होना है।

रमण महर्षि

जब सूरज उगता है तो केवल कुछ कलियाँ खिलती हैं, सारी नहीं। क्या इसके लिए सूरज को दोषी ठहराया जाएगा? कलियाँ स्वयं नहीं खिल सकतीं और इसके लिए सूरज की धूप का होना भी ज़रूरी है।

रमण महर्षि

ध्यान एक युद्ध है।

रमण महर्षि

पहले समर्पण करो और फिर देखो।

रमण महर्षि

अपने-आप में स्थिर हो और जानो कि मैं ईश्वर हूँ।

रमण महर्षि

मन की सहायता से ही मन को मारा जा सकता है।

रमण महर्षि

‘मैं करता हूँ’ यही भाव तो अवरोध है। स्वयं से पूछें : ‘कौन करता है?’

रमण महर्षि

‘मैं कौन हूँ’ इस अनुसंधान का अर्थ यही है कि आप अहं के स्रोत का पता करें।

रमण महर्षि

कभी कभी ऐसा समय आता है जब मनुष्य को वह सब भूलना होता है, जितना उसने सीखा हो।

रमण महर्षि

‘मैं’ कौन है, इसकी तलाश करें।

रमण महर्षि

‘मैं’ ही ‘मैं’ की माया को हटाता है और अंत में ‘मैं’ शेष रहता है।

रमण महर्षि

याद रखें कि आप कौन हैं।

रमण महर्षि