विजय देव नारायण साही के उद्धरण

नितांत अव्यावहारिक होना नितांत ईमानदारी और अक़्लमंदी का लक्षण है।
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कविता को राजनीति में नहीं घुसना चाहिए। क्योंकि इससे कविता का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, राजनीति के अनिष्ट की संभावना है।
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मुझसे पहले की पीढ़ी में जो अक़्लमंद थे, वे गूँगे थे। जो वाचाल थे, वे अक़्लमंद नहीं थे।
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कविता के क्षेत्र में केवल एक आर्य-सत्य है : दुःख है। शेष तीन राजनीति के भीतर आते हैं।

असामंजस्य देखने का काम बुद्धि करती है। परिभाषा बदलने का काम कल्पना करती है।
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लहर की बनावट, उसकी ऊँचाई, गहराई, लंबाई स्वयं उस पर निर्भर नहीं; इन सबका उत्तरदायित्व सागर की गति पर है।
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संबंधित विषय : समुद्र
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मैं संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्राणी हूँ। यदि नहीं हूँ तो आत्महत्या के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।
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संबंधित विषय : आत्महत्या
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शब्दों में अभिव्यक्ति अभ्यास के द्वारा होती है। यह सब एक निमिष में हो सकता है, इसको एक युग भी लग सकता है; कवि-कवि पर निर्भर है।
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कविता राग है। राग माया है। माया और अध्यात्म में वैर है। अतः आध्यात्मिक कविता असंभव है।
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कवि की अमरता ग़लतफ़हमी पर निर्भर करती है। जिस कवि में ग़लत समझे जाने का जितना अधिक सामर्थ्य होता है, वह उतना ही दीर्घजीवी होता है।
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संबंधित विषय : कवि
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लहर की भाँति कवि भी समाज-सागर से अभिन्न अस्तित्व नहीं रख सकता।
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कवि अभागा है। वह विशिष्ट अनुभूति को बदल नहीं पाता। तब तक बेचैन रहता है जब तक परिभाषा को बदल नहीं लेता।
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विचारधाराओं और इच्छावृत्तियों के मार्मिक द्वंद्व ने मेरी रचना-शक्ति में ऐसी निष्क्रियता पैदा कर दी है कि मादकता में डूबकर एक पग भी चलना मुहाल है।
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साहित्यकार को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए कि वह समाज को संगुम्फित करे।
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जिसे हम आधुनिकता करके जानते हैं, वह ख़ासी घुलनशील चीज़ है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere