उज्ज्वल शुक्ल के बेला
पीपर पात सरिस मन डोला
कहीं से लौट रहा हूँ और कहीं जा रहा हूँ। आज पैसे मिले थे तो कैब की सवारी है और साहित्यिक ब्लॉगों पर अक्टूबर की रूमानियत।
रूमानियत पर एक रूमानी बातचीत
एक रोज़ जब लगभग सन्नाटा पसरने को था, मैंने अपने साथ खड़े लेखक से पूछा, “आप इतनी रूमानियत अपनी रचनाओं में क्यों भरते हैं?