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लॉर्ड बायरन

1788 - 1824 | लंदन

लॉर्ड बायरन के उद्धरण

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मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

हम बस इतना जानते हैं कि कुछ भी नहीं जाना जा सकता।

अपने प्रथम भावावेश में नारी अपने प्रेमी से प्रेम करती है किंतु अन्यों में वह केवल प्रेम से प्रेम करती है।

दुर्गम वनों में आनंद होता है और एकाकी समुद्र तट पर हर्षोन्माद। गहरे समुद्र के तट के जनशून्य स्थान में भी समाज होता है और सागर के गर्जन में संगीत। मैं मानव को कम प्रेम नहीं करता, पर प्रकृति को अधिक प्रेम करता हूँ।

आलोचना को छोड़कर हर व्यवसाय सीखने में मनुष्य को अपना समय लगाना चाहिए क्योंकि आलोचक तो सब बने बनाए ही हैं।

झुकने वाला व्यक्ति तड़प सकता है और विद्रोह कर सकता है, पश्चात्ताप तो निर्बल व्यक्ति करते हैं।

संवेदनशील बनो परंतु निर्मल भी। प्रेमी बनो परंतु पवित्र भी।

अपना नाम छपा हुआ देखना निश्चित ही सुखद होता है। पुस्तक तो पुस्तक ही है भले ही उसमें कुछ हो।

प्रतिशोध मधुर होता है—विशेष रूप से स्त्रियों के लिए।

एक प्रातः मैं जागा ओर अपने को प्रसिद्ध पाया।

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