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स्वानंद किरकिरे : सिनेमा-संगीत की दुनिया का बावरा मन

कला की बहुरंगी दुनिया में कुछ कलाकार ऐसे होते हैं, जो अपनी प्रतिभा के दम पर एक साथ कई क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। भारतीय सिनेमा और संगीत की दुनिया में स्वानंद किरकिरे भी ऐसे ही एक बहुआयामी व्यक्तित्व का नाम हैं, जिन्होंने गीतकार, गायक, लेखक, अभिनेता और संवादकार के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

29 अप्रैल 1972 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे स्वानंद किरकिरे का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ। उनके पिता चिंतामणि किरकिरे और माता नीलांबरी किरकिरे दोनों ही शास्त्रीय संगीत के गायक थे। इस संगीतमय वातावरण में पले-बढ़े स्वानंद को बचपन से ही संगीत और कलाओं के प्रति गहरा लगाव था। घर का माहौल ऐसा था कि राग-रागिनी और साहित्य-चर्चा नियमित रूप से होती रहती थी, जिसने उनके व्यक्तित्व को गढ़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (नई दिल्ली) में प्रवेश के साथ उन्होंने न केवल अभिनय की बारीकियाँ सीखीं, बल्कि रंगमंच की गहरी समझ भी प्राप्त की। यहाँ उन्होंने विभिन्न नाटकों में अभिनय किया और रंगमंच के तकनीकी पहलुओं को भी समझा। रा.ना.वि. में उनके सहपाठी नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, सुब्रत दत्ता और चित्तरंजन त्रिपाठी रहे। 

स्वानंद ने अपने एक साक्षात्कार में यह कहा था कि एन.एस.डी. के दिन उनके लिए एक कार्यशाला के समान थे, जहाँ उन्होंने न केवल अभिनय बल्कि निर्देशन, लेखन और संवाद-लेखन की भी बारीकियाँ सीखीं। इस दौरान उन्होंने जाना कि कैसे एक कहानी को मंच पर जीवंत बनाया जाता है और कैसे दर्शकों से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित किया जाता है। यह जिज्ञासा ही किसी कलाकार को उसके क्षेत्र में औदात्य प्रदान करती है।

एन.एस.डी. से निकलने के बाद स्वानंद किरकिरे ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी क़िस्मत आज़माने का फ़ैसला किया। शुरुआत में उन्होंने सहायक निर्देशक के रूप में काम किया और धीरे-धीरे संवाद-लेखन के संसार में प्रवेश किया। हालाँकि उनका सपना निर्देशक बनने का था; लेकिन नियति, मौक़े-बेमौक़े या यूँ कहें कि उनकी प्रतिभा ने उन्हें गीतकार बनने की दिशा में मोड़ दिया।

उन्होंने गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाई और जल्द ही बॉलीवुड के जाने-माने गीतकारों में शामिल हो गए। उनके गीतों की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वे आम जन के दिल को छूते हैं और उनमें जीवन की सच्चाइयों का गहरा चित्रण होता है।

उनके फ़िल्म-करियर में यह एक महत्त्वपूर्ण मोड़ की तरह था, जब उन्होंने सुधीर मिश्र की फ़िल्म ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ (2003) के लिए ‘बावरा मन देखने चला एक सपना...’ गीत लिखा और गाया। यह गीत उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों में लिखा था, जो बाद में एक क्लासिक बन गया। इस गाने के बोल में जीवन की अनिश्चितताओं का सुंदर चित्रण है।

‘बावरा मन देखने चला एक सपना...’ गीत की सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें प्रेम, सपने और जीवन-संघर्ष का एक अनूठा मिश्रण है। स्वानंद किरकिरे ने न केवल इस गीत को लिखा; बल्कि अपनी आवाज़ भी दी, जिसने इस गीत को और भी मार्मिक बना दिया। उनकी आवाज़ में एक ख़ास कोमलता और भावनात्मक गहराई है, जो शायद इस गीत के मूड के साथ पूरी तरह से मेल खाती है।

2006 में उन्होंने फ़िल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के लिए ‘बंदे में था दम... वंदे मातरम्...’ गीत लिखा, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2009 में उन्होंने एक और मील का पत्थर स्थापित किया, जब उन्होंने फ़िल्म ‘3 इडियट्स’ के लिए ‘बहती हवा-सा था वो...’ गीत लिखा। इस गीत के लिए उन्हें दूसरी बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला।

स्वानंद किरकिरे का अभिनय करियर उनकी बहुआयामी प्रतिभा का एक और उत्कृष्ट उदाहरण है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से मिली शिक्षा और रंगमंच का अनुभव उनके अभिनय में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वह मुख्यतः चरित्र अभिनेता के रूप में काम करते हैं और अपने हर किरदार में एक विशिष्ट गहराई और प्रामाणिकता लाते हैं।

‘थ्री ऑफ़ अस’ (2022)—यह स्वानंद किरकिरे के अभिनय करियर की सबसे महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। अविनाश अरुण के निर्देशन में बनी इस हिंदी फ़िल्म में उन्होंने दीपंकर की भूमिका निभाई है—एक ऐसे पति का किरदार जो अपनी डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) से पीड़ित पत्नी (शेफाली शाह) का साथ देता है। फ़िल्म में जयदीप अहलावत भी मुख्य भूमिका में हैं। यह फ़िल्म 24 नवंबर 2022 को भारतीय फ़िल्म महोत्सव में प्रीमियर हुई और 3 नवंबर 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। इस फ़िल्म में उनका अभिनय बेहद संवेदनशील और मार्मिक है। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया है, जो अपनी पत्नी की बीमारी के साथ-साथ अतीत की उसकी यादों से भी जूझता है। यह भूमिका उनकी अभिनय-क्षमता को एक नए आयाम में प्रस्तुत करती है।

‘चुम्बक’ (2018)—इस मराठी फ़िल्म में उनके अभिनय के लिए उन्हें 2018 में 66वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार उनके अभिनय कौशल की आधिकारिक मान्यता थी।

‘पंचायत’—इस लोकप्रिय वेब सीरीज़ में उन्होंने सांसद जी का किरदार निभाया है। उनका यह किरदार तीसरे सीज़न में एक कैमियो के रूप में शुरू हुआ और बाद में चौथे सीज़न में भी जारी रहा। पंचायत जैसी प्रशंसित सीरीज़ में उनकी उपस्थिति ने उन्हें एक बिल्कुल नई पीढ़ी के दर्शकों से जोड़ा है।

‘कला’ (2022)—इस नेटफ़्लिक्स फ़िल्म में उन्होंने मंसूर ख़ान साहब का किरदार निभाया था। इस फ़िल्म में उन्होंने न केवल अभिनय किया, बल्कि गीतकार और गायक के रूप में भी अपना योगदान दिया। ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ (2017)—इस लोकप्रिय बॉलीवुड फ़िल्म में भी उन्होंने अभिनय किया।

स्वानंद किरकिरे के अभिनय में एक स्वाभाविक प्रवाह है, चाहे वह ‘थ्री ऑफ़ अस’ में एक पति का किरदार निभा रहे हों या अन्य कोई भी, उनके हर किरदार में एक भावनात्मक सत्यता होती है।

स्वानंद किरकिरे ने एक लेखक और संवाद लेखक के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने कई फ़िल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों के लिए संवाद लिखे हैं। उनके संवाद हमेशा प्रभावशाली होते हैं और वे पात्रों की भावनाओं को सटीक रूप से व्यक्त करते हैं।

स्वानंद इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि कलाकार का काम समाज को दर्पण दिखाना है और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देना है। उनका मानना है कि कला केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक माध्यम है। 

स्वानंद किरकिरे की जीवन-यात्रा यह बतलाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर कई क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से शुरू हुई उनकी यात्रा आज भी जारी है और वह फ़िल्म-संगीत की दुनिया में निरंतर नए आयाम गढ़ रहे हैं।

इसके अलावा उनकी गति साहित्य में भी है। उर्दू, हिंदी और मराठी लेखन-परंपरा से ख़ुद को प्रभावित मानने वाले स्वानंद का पहला कविता-संग्रह—‘आपकमाई’ (2017) प्रकाशित हो चुका है।

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सुप्रसिद्ध गीतकार-गायक स्वानंद किरकिरे की 'हिन्दवी उत्सव' के एक सत्र 'ऑल इंडिया कैंपस कविता' में विशेष उपस्थिति रहने वाली है। ‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025

 

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