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जो बचा है वह है बस शब्दों का एक नगर

मैं, पम्पा कम्पाना, हूँ इस कृति की रचयिता/ मैंने एक साम्राज्य का उत्थान और पतन देखा है/ अब उन्हें कैसे याद करता है कोई, उन राजाओं और उन रानियों को?/ अब वे बचे हैं बस शब्दों में/ वे थे तो थे विजेता या विजित या दोनों/ अब वे इनमें से कुछ नहीं हैं/ बस शब्द होते हैं विजेता/ उन्होंने क्या किया या क्या सोचते थे या कैसा महसूस किया, अब उसका कोई अर्थ नहीं/ केवल उन बातों की कहानी कहते ये शब्द बचे हैं/ वे वैसे याद किए जाएँगे जैसे मैंने उन्हें याद करना तय किया है/ उनके कृत्य बस वैसे जाने जाएँगे जैसे मैंने उन्हें लिखा है/ उनका उतना ही अर्थ होगा जितना मैंने उन्हें देना चाहा है/ मैं स्वयं अब कुछ नहीं हूँ/ जो बचा है वह है बस शब्दों का एक नगर/ शब्द ही होते हैं एकमात्र विजेता...  

247 वर्षीया कवयित्री-रानी-देवी के इन कथित अंतिम शब्दों के साथ उपसंहार तक पहुँचती सलमान रश्दी की ‘विक्ट्री सिटी’ मध्यकालीन विजयनगर साम्राज्य के उत्थान और पतन के पुनराख्यान के लिए इतिहास, मिथक और जादुई यथार्थवाद का कुशलता से संयोजन करती है। उपन्यास के केंद्रीय चरित्र पम्पा कम्पाना के नज़रिए से रश्दी ने सत्ता, आदर्शवाद और इतिहास की चक्रीय प्रकृति जैसी विषयवस्तुओं का साहित्यिक अन्वेषण किया है। 

उपन्यास को साढ़े चार सदी बाद पाई गई एक संस्कृत पांडुलिपि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो कथा को ऐतिहासिक प्रामाणिकता और पौराणिक भव्यता का एक सबल तत्व प्रदान करती है। दावा है कि पांडुलिपि पम्पा कम्पाना विरचित है और किसी अनामिक समकालीन लेखक द्वारा इसका अनुवाद किया गया है। कथानक को कसने की यह विधि रश्दी को आधुनिक संवेदनशीलता को बनाए रखते हुए कथा में प्राचीन काव्य-संवेदना को संलग्न कर सकने की अनुमति देती है। यह ढाँचा न केवल अतीत और समकाल को संयुक्त करता है, बल्कि उपन्यास की विषयवस्तुओं की कालातीत प्रकृति को भी रेखांकित करता है। 

सलमान रश्दी का गद्य समृद्ध और विहंगम है, जो ज्वलंत कल्पना और सांस्कृतिक संदर्भों से भरपूर है। ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ और ‘द सैटेनिक वर्सेज़’ जैसी उनकी पिछली कृतियों में भी शैली का यह अनूठापन नज़र आया था, जहाँ कथाक्रम का ताना-बाना बुनने के लिए विस्तृत रूपकों और एक रसिक भाषा का इस्तेमाल किया गया था। 

‘विक्ट्री सिटी’ में रश्दी की भाषा गीतात्मक और गहन है, जो सांस्कृतिक काव्य-सी भव्यता रखती है। कई बार तो यह गद्य स्वयं एक किरदार का वेश धारण कर लेता है और जैसे अँगुली पकड़ पाठक को विजयनगर की बहुआयामी दुनिया से परिचित कराता है।

उपन्यास में पम्पा कम्पाना केंद्रीय उपस्थिति रखती है जो एक अत्यंत जटिल और गहन चरित्र है। वह नौ वर्ष की थी—जब उसने युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवाओं को सती होते देखा था। इनमें उसकी माता भी शामिल थी। इस त्रासद अनुभव के बाद उसके शरीर में देवी के प्रवेश के साथ उसे दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हुईं। वह इन शक्तियों का उपयोग कर दो चरवाहे भाइयों की मदद से एक जादुई या अलौकिक नगर की स्थापना करती है। एक अनाथ बालिका से रानी और फिर नगर-निर्मात्री बनने तक की पम्पा की यात्रा राजनीतिक और धार्मिक संघर्ष से भरी दुनिया में समानता और शांति के अपने आदर्शों को बनाए रखने के उसके संघर्ष से चिह्नित होती है।

कथा में पम्पा का चरित्र शक्ति और आदर्शवाद की खोज का प्रतीक है। वह स्रष्टा और संरक्षक दोनों है, जो स्वप्न और यथार्थ के बीच के तनाव को मूर्त रूप प्रदान करती है। सुदीर्घ आयु और आयु बढ़ने की धीमी प्रक्रिया उसे आम मानव समय की सीमा लाँघ विजयनगर के उत्थान और पतन का साक्षी बनने का अवसर देती है, जहाँ फिर वह स्वयं नगर के इतिहास का जीवंत वृत्तांत बन जाती है। पाने-खोने-सहने के उसके अनुभव व्यापक मानवीय स्थिति को परिलक्षित करते हैं और वह एक परिचित और शाश्वत चरित्र में ढल जाती है।

उपन्यास में हुक्का और बुक्का के ऐतिहासिक किरदार भी आए हैं जिनकी पम्पा ने विजयनगर की स्थापना में मदद की। इन पात्रों को उनके चरित्र क्रम और विकास के साथ विशद रूप से चित्रित किया गया है जो कथा की समृद्धि में योगदान करते हैं। सत्ता समीकरण की जटिलताओं और नेतृत्व की चुनौतियों के निरूपण में ये पात्र सफल दीखते हैं। ऐतिहासिक पात्रों को काल्पनिक पात्रों के साथ बुनने में रश्दी की सफलता कथा में गहराई की परतें जोड़ती है, जिससे मध्ययुगीन भारत का जीवंत और बहुआयामी चित्रण प्रस्तुत होता है।

‘विक्ट्री सिटी’ की एक प्रमुख विषयवस्तु इतिहास की चक्रीय प्रकृति है। रश्दी इस बात पर बल रखते हैं कि शासक और राजवंश किस प्रकार उत्थान और पतन की राह पर बढ़ते हैं। यह मानव सभ्यता के दोहरावपूर्ण स्वरूप को दर्शाता है। हम पम्पा की आँखों से सत्ता की क्षणभंगुर प्रकृति और परिवर्तन एवं संघर्ष की अनिवार्यता के बीच एक ‘यूटोपिया’ या स्वप्नलोक की अंतहीन तलाश के चिह्न पाते हैं। यह प्रतिपाद्य उपन्यास की संरचना से संपुष्ट होता है, जहाँ विजयनगर के इतिहास को एक महाकाव्य और बोध कथा दोनों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
धार्मिक असहिष्णुता और सत्ता की लालसा अन्य प्रमुख विषयवस्तु के रूप में प्रकट हुए हैं। 

समतावादी और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना का पम्पा का स्वप्न राजनीतिक उथल-पुथल और सामाजिक प्रतिरोध के कारण लगातार विफल होता रहता है। उपन्यास लैंगिक समानता और धार्मिक सहिष्णुता जैसे समकालीन मुद्दों से संबोधित होता है, जो इसे समकाल के लिए प्रासंगिक बनाता है। रश्दी द्वारा विजयनगर का चित्रण उन मानव समाजों की जटिलताओं के लिए एक रूपक के रूप में कार्य करता है जो आदर्शवादी लक्ष्यों के लिए प्रयासरत तो होते हैं, लेकिन प्रायः विफल हो जाते हैं।

‘विक्ट्री सिटी’ में स्वयं कथा-कथन को एक प्रमुख विषयवस्तु के रूप में बरता गया है। पम्पा के हवाले से रश्दी सुझाव देते हैं कि शब्द और कहानियाँ ही सच्चे विजेता हैं, जो साम्राज्यों से अधिक समय तक जीवित बने रहते हैं और मृत्यु को चुनौती देते हैं। विजयनगर की कथा मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण के साथ आदर्शों को संरक्षित करने और भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए कथाकथन की शक्ति को रेखांकित करती है। यह उपन्यास अपनी पूर्णता में मानवीय रचनात्मकता की प्रत्यास्थता और आख्यानों के स्थायी प्रभाव का उत्सव मनाता है।

‘विक्ट्री सिटी’ मध्यकालीन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ से गहराई से जुड़ी हुई है। अपनी समृद्धि, उत्कृष्ट स्थापत्य और सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए विख्यात विजयनगर साम्राज्य इस उपन्यास के लिए एक सबल पृष्ठभूमि प्रदान करता है। रश्दी द्वारा साम्राज्य का चित्रण यथार्थवादी और काल्पनिक दोनों दृष्टिकोणों से किया गया है, जो इसकी भव्यता और जटिलता दोनों को प्रकट करता है। हिंदू महाकाव्यों से लेकर क्षेत्रीय लोककथाओं तक के सांस्कृतिक संदर्भ, कथा में प्रामाणिकता और गहराई की परतों का योग करते हैं।
रश्दी द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों को जादुई यथार्थवाद के साथ मिलाकर एक ऐसी अनूठी कथा का निर्माण किया गया है जो पारंपरिक ऐतिहासिक कथा साहित्य से विलग प्रस्तुत होता है। पम्पा की दिव्य शक्तियाँ और विजयनगर के चमत्कारी उत्थान जैसे जादुई तत्त्व साधारण के भीतर असाधारण को उजागर करने का प्रयास करते हैं, जो रश्दी की कहानी कहने की अपनी ख़ासियत है। इतिहास और मिथक का यह मिश्रण न केवल कथा को समृद्ध करता है; बल्कि पाठकों को ऐतिहासिक सत्य की प्रकृति और अतीत को समझने में कल्पना की भूमिका पर विचार करने के लिए आमंत्रित भी करता है।

‘विक्ट्री सिटी’ में रश्दी द्वारा भाषा का उपयोग एक शैलीगत विकल्प और विषयगत उपकरण दोनों की तरह किया गया है। उनका गद्य अपनी समृद्धि, रसिकता और गीतात्मक गुणवत्ता से चिह्नित होता है। कथा में सांस्कृतिक संकेत, रूपक भाषा और विशद वर्णन शामिल हैं जो विजयनगर की दुनिया को जीवंत बनाते हैं। रश्दी प्रायः अपनी शैली में विषयांतरण या प्रसंग-च्युति का भी उपयोग करते हैं, जहाँ मुख्य कथा को विभिन्न उप-कथाओं और पृष्ठभूमि की कथाओं से पूरकता प्राप्त होती है।

उपन्यास का स्वर हास्य और गंभीर के इत-उत में डोलता रहता है, जो मानवीय अनुभव के द्वंद्व को दर्शाता है। रश्दी द्वारा विडंबना और व्यंग्य का उपयोग विशेष रूप से राजनीतिक और धार्मिक हस्तियों के चित्रण में आख्यान को आलोचना की एक परत प्रदान करता है। रसिक स्वर के साथ विषयवस्तु की गंभीर खोज एक गतिशील पठन अनुभव का सृजन करती है।

‘विक्ट्री सिटी’ की गहन और विषयांतरण शैली कुछ पाठकों के लिए आकर्षक हो सकती है तो कुछ को बोझिल भी लग सकती है। कथा में सांस्कृतिक संदर्भों और वर्णनात्मक रूपकों की अधिकता यद्यपि आख्यान को समृद्ध करती है, लेकिन संदर्भ से अपरिचित पाठकों के लिए यह कथा को अगम्य भी बना सकती है। आख्यान के लिए ऐतिहासिक और काल्पनिक तत्वों का सम्मिश्रण अभिनव अनुभव तो रचता है, लेकिन कभी-कभी आख्यान से असंगतता का भी कारण बनता है। 

सलमान रश्दी की ‘विक्ट्री सिटी’ एक उल्लेखनीय साहित्यिक कृति है जो ऐतिहासिक पुनराख्यान तक सीमित नहीं रहते हुए मानवीय स्थिति और ‘यूटोपिया’ की कालातीत खोज पर एक चिंतन का रूप ग्रहण कर लेती है। यह उपन्यास शब्दों की शाश्वत शक्ति और मानवीय भावना की प्रत्यास्थता का उत्सव भी है जो इसे समकालीन साहित्यिक परिदृश्य के लिए मूल्यवान बनाता है।

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