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वागीश शुक्ल

1946 | उत्तर प्रदेश

समादृत आलोचक। प्रतिनिधि आलोचनात्मक निबंधों का चयन 'प्रतिदर्श' शीर्षक से प्रकाशित।

समादृत आलोचक। प्रतिनिधि आलोचनात्मक निबंधों का चयन 'प्रतिदर्श' शीर्षक से प्रकाशित।

वागीश शुक्ल के बेला

15 नवम्बर 2025

प्रतिउत्तर : ‘नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद’

प्रतिउत्तर : ‘नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद’

शिवमूर्ति जी ने ‘अगम बहै दरियाव’ पर मेरी आलोचना देखकर एक प्रतिलेख लिखा है और ग़ालिब की यह मनःकामना मेरे हित में पूरी कर दी : नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद या रब! अगर इन कर्दा गुनाहों क

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न

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