राजनीति पर दोहे

राजनीति मानवीय अंतर्क्रिया

में निहित संघर्षों और सहयोगों का मिश्रण है। लेनिन ने इसे अर्थशास्त्र की सघनतम अभिव्यक्ति के रूप में देखा था और कई अन्य विद्वानों और विचारकों ने इसे अलग-अलग अवधारणात्मक आधार प्रदान किया है। राजनीति मानव-जीवन से इसके अभिन्न संबंध और महत्त्वपूर्ण प्रभाव के कारण विचार और चिंतन का प्रमुख तत्त्व रही है। इस रूप में कविताओं ने भी इस पर पर्याप्त बात की है। प्रस्तुत चयन में राजनीति विषयक कविताओं का एक अनूठा संकलन किया गया है।

परज्या कौ रक्षा करै सोई स्वामि अनूप।

तर सब कौं छहियाँ करै, सहै आप सिर धूप॥

जान कवि

जानि लेहू कवि जान कहि, सो राजत संपूर।

जामै ह्वै ये तीन गुन न्याई दाता सूर॥

जान कवि

परजा जानहु मूल तुम्ह, राजा ब्रिच्छ बिचार।

अपनी जरहिं उषारिहै, परजा षोवनहार॥

जान कवि

कोविड में बहरा हुआ

अंधा बीच बज़ार।

शमशानों में ढूँढ़ता

कहाँ गई सरकार॥

जीवन सिंह

पहले अंधा एक था

अब अंधों की फ़ौज।

राम नाम के घाट पर

मौज मौज ही मौज॥

जीवन सिंह

खाल खींचकर भुस भरा

और निचोड़े हाड़।

राजा जी ने देश के

ख़ूब लड़ाए लाड़॥

जीवन सिंह

राजा गए शिकार को

लिए दुनाली साथ।

सुनकर सिंह दहाड़ को

लौटे ख़ाली हाथ॥

जीवन सिंह

सुजन सुखी दुरजन डरैं, करैं न्याय धन संच।

प्रजा पलै पख ना करैं, श्रेष्ठ नृपति गुन पंच॥

बुधजन

नृप चालै ताही चलन, प्रजा चलै वा चाल।

जा पथ जा गजराज तहँ, जात जूथ गजवाल॥

बुधजन

राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।

जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥

जसुराम

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