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दर्पण पर कविताएँ

दर्पण, आरसी या आईना

यों तो प्रतिबिंब दिखाने वाला एक उपयोगी सामान भर है, लेकिन काव्यात्मक अभिव्यक्ति में उसका यही गुण विशेष उपयोगिता ग्रहण कर लेता है। भाषा ने आईने के साथ आत्म-संधान के ज़रूरी मुहावरे तक गढ़े हैं। इस चयन में प्रस्तुत है दर्पण को महत्त्व से बरतती कुछ कविताओं का संकलन।

सिंहावलोकन

एच. एस. शिवप्रकाश

शीशा

मलयज

उसने लौटने का...

उदयन वाजपेयी

प्रतिबिंब

जगन्नाथ प्रसाद दास

कहाँ है?

कुमुद पटवा

आईना

प्रभात प्रणीत

आईने में चिड़िया

दिलीप शाक्य

आईना

चंद्रकुमार

मेरा प्रतिबिंब

सारिका सिंह

दर्पण

नरेश अग्रवाल

अफ़सोस-दर्पण

हेमंत शेष

चित्सत्ता का अविरत स्पंदन...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

दर्पण-सी हँसी

सविता सिंह

हम सब दर्पण हैं!

मदनलाल डागा

आईने के सामने

अतिया दाऊद

आईना

पुरुषोत्तम शिवराम रेगे

आईना

दर्शन बुट्टर

दुख यदि जाना मेंरा उसने...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

आईना

सावित्री राजीवन

पाँच

अमिताभ चौधरी

टूटा दर्पण...

कन्हैयालाल सेठिया

तुम्हारा आईना

मुसाफ़िर बैठा

जीवाश्म−सा

अनिरुद्ध उमट

संभावित

श्याम परमार

शक्ल का आईना

जगदीश चतुर्वेदी

आईना

अनुराग अनंत

आईना

राहुल द्विवेदी

आईना

सुनील झा

सुगंधें

रुस्तम