मनीष पटेल के बेला
सैयारा : अच्छी कहानियाँ स्मृतियों की जिल्द हैं
‘हम कोशिकाओं से नहीं, स्मृतियों से बने हैं।’ शिवेन्द्र का यह कथन, जो मैंने एक बार ‘सदानीरा’ पत्रिका में पढ़ा था, उस वक़्त केवल एक दिलचस्प विचार लगा था। मगर अब, इसका अर्थ मेरे लिए कहीं गहरा हो गया है।
टूटते आदर्श की दरारों के बीच विचरण करते इंस्टाग्राम युग के छात्र
(नोट : इस रेखाचित्र में एक शिक्षक ने अपनी निराशा को क़ैद किया है। यदि आपका हृदय फूलों की तरह कोमल है, तो यह रेखाचित्र सावधान होकर पढ़ें। उसमें दाग़ लग सकते हैं।) यहाँ से न जाने कितनी ट्रेनें-बसें च