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मौलाना जलालुद्दीन रूमी

1207 - 1273

मौलाना जलालुद्दीन रूमी के उद्धरण

नास्तिकता शुष्क छिलका है जो ऊपर से विलक हो गया तो उसके नीचे धर्म का कोमल और स्वादिष्ट छिलका पाया गया।

मैं कौन हूँ और कौन नहीं हूँ, इसको जानने में मैंने बहुत-सी चीज़ें जान ली हैं। और वह कौन है और कौन नहीं है इसी को जानने में बहुत-सी चीज़ें मैंने खो दी हैं।

अंत में मैंने अपने हृदय के कोने में दृष्टि डाली। देखता क्या हूँ कि वह वहीं पर उपस्थित है। दूसरे स्थानों में व्यर्थ भटकता फिरा।

मैंने द्वैत के आवरण को अपने अंदर से निकाल दिया है। दोनों संसारों (नश्वर जगत् अविनाशी जगत्) को मैं एक ही जानता हूँ। मैं एक ही को ढूँढ़ता हूँ और उसी को जानता हूँ। वही एक मेरी दृष्टि में है और वही एक मेरे हृदय में है।

वही आदि है और वही अंत है। वही प्रकट है और वही अदृश्य है। जो बाहर है और जो मेरे अंदर है, उसके अतिरिक्त और किसी को मैं नहीं जानता।

भेद-बुद्धि पशु की अवस्था का लक्षण है, अभेदबुद्धि मनुष्यता का।

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