तब मेरा शीतल क्रोध उस जल के समान हो उठा, जिसकी तरलता के साथ, मिट्टी ही नहीं, पत्थर तक काट देने वाली धार भी रहती है।
जो जितेंद्रिय नहीं हैं, उनके नेत्र उच्छृंखल इंद्रिय रूपी अश्वों द्वारा उठी धूल से भर जाते हैं।
मानव की लालसाएँ समुद्र की रेत की तरह अनगिनत हैं।
हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।
रेत के एक कण में एक संसार देखना, एक वनपुष्प में स्वर्ग देखना, अपनी हथेली में अनन्तता को देखना और एक घंटे में शाश्वतता को देखना।